________________
अपभ्रंश-भारती
एक्कुणसट्टि
खणु
पट्टणु
रायगिहु
सेहरु
चरणोपरि
चरणोवरि
अष्टोत्तर
अट्ठोत्तर
शिलोपरि सिलोवरि
मानुसोत्तर माणुसोत्तर
दानोज्झर
दाणोज्झरउ
शीलोपवास
सीलोववास
षष्ठोपवास
छट्टोववा
अपरोप्पर
अवरोप्पर
a+ए=ए, यथा
एक्क्कए
अवरेrsहि
कहि
एक्क + उणसट्टि
खण+उ
पट्टण रायग+उ सेहर+उ
अपवाद
अ +उ = प्रो
इसके अन्तर्गत आनेवाले शब्द भी मूलरूप से संस्कृत के शब्द हैं जो केवल ध्वनि आकार में भिन्न दिखते हुए भी अभिन्न हैं, इसलिए संस्कृत भाषा की ध्वनियों का अनुगमन करते हैं । इस कारण प्रपभ्रंश भाषा की शब्दावली की संरचना इनसे भी अव्याख्येय है । ये केवल काव्यभाषा की प्राचीनता का निर्देश भर करते हैं, संरचना का नहीं ।
चरण + उवरि
एक्कमेक्क
किले से
वेणु
+उ
करेवि
आयरेवि
कुम्में
समरे
आ + ए = ए. यथामहए विहे
अट्ठ + उत्तर
सिल + उवरि
+ उत्तर
नियम - 5
इस नियम में / श्रा स्वर के परे ए होने पर ए हो शेष रह जाता है और पूर्ववर्ती स्वर /श्रा का लोप हो
जाता है ।
माणुस
दाण + उज्झरउ
सील + उववास
छट्टु + उबवासे
अवर + उप्पर
एक्क + एक्कए
अवर + एक्कहि
अण्ण+ एक्कहि
एक्कम + एक्क
किलेस + एक्क + एक्क
ra + एप्पिणु
कर + एवि 'आयर + एवि
अ +उ = उ
5.9
अ +उ = उ मं. 3
अ+उ= उ
अ +उ = उ
अ +उ = उ
कुम्म+एं
समर + ए
1.4.9
1.4.9
1.4.9
महा + एविहे
अ +उ = प्रो 2.2
भ + उ = प्रो 2.1 अ +उ = प्रो 2.3 अ+उ=ओ 3.7 अ +उ = ओ 3.6 अ +उ = प्रो 3.11
अ +उ =ओ 5.3
अ +उ = ओ 6.7
अ + ए =ए 3.4 श्र+ए=ए 3.12 अ + ए =ए 3.12 अ + ए =ए 4. 7 अ+ए=ए 5.15 अ + ए =ए 1.1 अ+ए=ए 1.8.1 अ + ए =ए 1.8.1
31
अ + ए =ए 1.10.2
अ+ए=ए 1.10.2
अ+ए=ए 6.1