Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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June-2003
दामु दुरीअ विणासीअ, देवि दान उदासीअ
आसीआतह (तेह ? ) तणी हुं सी भणु ए ||१६|| कुंरु कुमति विणासीअ, महीतलि जेणि विभासीअ जेणइ पुण्य सुवेलडी ए ॥१७॥
तास पीआ गुणपूरीअ, अवगुण कीधा दूरीअ
सूरीअ नाथी सीहणि सारिखी ए ॥१८॥ सूर सुपन पामी तदा, सेजिइं सूतां एकदा
सा मुदा पति पासइ आवी वदइ ए ॥१९॥ कूरिग भणइ सुजाण ए, पुत्र हसि जगि भाण ए
आण ए त्रिभुवन जेहनी चालसि ए ||२०| अवधि संपूरण तव भई, जनमिउ पुत बहु गुणमई
जगि थई कीरति रतिनइ आपती ए ॥२१॥ नाम धरिउं तस हीरु ए, सो सब जगनु हीरु ए
वीरु ए लाख चुरासी जीवनुं ए ॥ २२ ॥ पूरव प्रीआ अजूआलीअ, रणसिंह लगि विशालीअ
पालीअ पुण्यनीक तरु सीचवा ए ||२३|| लहूअलगि वइरागीअ, अथिर संसारनुं त्यागीअ
वइरागीअ हीरजी रागी धर्मनुं ए ||२४|| वरस आठ दोई भरि, चारित्रस्युं मन अणुसरि
आदरि वचन भणे पितु मातस्युं ए ॥ २५ ॥ राग गुडी ॥ दूहा ॥
ए गुणी पंडित हूंउ हवि, तम्हे धरु घरभार । पाणिग्रहण तुम मेलीइ, उछव करी उदार ॥ १ ॥
वलतुं वी (ही) र वचन भणि, मातपिता सुणि वाणि । न न परणुं व्यापार न न करु सु ताणो ताण || २ ||
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