Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-२४ के करइ जासक जम्मणवार अन्न अवारी मन्न उदार । जम्माडी आपइ तंबोल ताजा निति निति एहवा नवल दवाजा ॥१७॥ को झाझो आणी अगर उखेवइ को वली देहरु ज भरइ मेवइ । को वानी वानीनां फल ढोइ पातग पोतानां पणि धोइ ॥१८॥ लाखीणी पूजा कोइ करावइ फूलनो कोइ पगर भरावइ । चंपकलीनो हार पहिरावइ अंगद बांहिं कोइ बनावइ ॥१९॥ चंग चंद्रुओ कोइ चडावइ कोइक बाजू-बंध घडावइ । हीरानइ चुंनीमाहि जडावइ मस्तकि कोइ मुगट सुहावइ ॥२०॥ केसर सूकडिना रंगरोल कपूरमाहिं छाकमछोल । दीप झलामलि जाणे दीवाली निसदिन मइ ते नयनि निहाली ॥२१॥
खेला ते खेलइ छयल छबीला फूटरा रूडा रूपरंगीला । पात्र प्रपंचइ निरूपम नाचइ राग आलापइ रंगि ज राचइ ॥२२॥ एक संघ आवइ एक सिधारइ पंन्यास वाचक सूरि पधारइ । तिल पडवानो नहीं पणि माग पासजी ऊपरि अति घण राग ॥२३।। सुंदरि सारइ सवि सिणगार कंठि ज ठवइ नवसर हार । वेणी ते सोहइ जिम शेषनाग देखी ते खोभइ जेह नीराग ॥२४॥ नाकइ ते लटकइ छइ नाकफूली मूल न थाइ अति बहुमूली । झब झब काने झबकइ झालि आवी नइ अडकइ गोरइ गालि ॥१५॥ राखडी राती लाल गुलाल अष्टमी समी सुंदर भाल । अलविं ते बहू आंखडी अंजइ वेधक रसियां मन रंजइ ॥२६॥ दाडिमकली दंतनो वृंद जीह ते जाणे अमीयनो कंद । अधर ज ओपइ विद्रुम रंग युव मधुकरनो जिहां किणि बंग ॥२७॥ पीन पयोधर कंचन कुंभ सदली ते साथलि कदली ज थंभ । कडि अति झीणी मुंठि ज माइ केसरी हार्यो वनमाहि जाइ ॥२८॥
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