Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
June-2003
सूत्र प्राभृत
बोधप्राभृत
४२
४२
४५
४५
४७
७७
८५
८९
१५
१००
Jain Education International
2
२०
२१
१०३
५०
५१
५५
५६ २
६६
६८ २४
≈ I ∞ I w 30 ~ o x & 2
२४
२५
२९
३५
३६
४४
२१
१७
२३
२९
३३
३७
रहिय ( रहिते)
दंसण ( दर्शनम्)
वय (व्रतम्)
सामाइय (सामायिकम्) पोसह (प्रोषधम्)
सचित्त (सचित्तम्)
- परिम (परिमाणम्)
चउत्थ (चतुर्थम्)
पंचम (पञ्चमम्)
अपरिग्गह (अपरिग्गहे)
आदाण (आदाणम्)
फुडु (स्फुटम् ) सिवमग्ग (शिवमार्गे)
वुत्त (उक्तम्)
कह (कथम्) चेइय (चैत्यम्)
विणय (विनयम् )
दंसण (दर्शनम्)
सुदगुण (श्रुतगुण:)
दंसण (दर्शने)
इंदिय (इन्द्रिये)
कसाय (कषाये)
संजम ( संजमे)
लेसा (लेश्यायाम्)
सम्मत्त (सम्यक्त्वे)
सण्णि (संज्ञिनि)
सिंहाण (सिंहाण:)
खेल (खेलः)
For Private & Personal Use Only
रहिए
दसणं
वयं
सामइयं
पोसहं
सचित्तं
परिमाणं
चउत्थं
पंचमं
अपरिग्गहे
आदाणं
फुडं (अपभ्रंश शब्द)
सिवमग्गे
वुत्तं
कहं
चेइयं
विणयं
दंसणं
सदगुणो
दंसणे
इंदिये
सा
संजमे
लेसाए
सम्मत्ते
93
सण्णिम्मि
सिंहाणो
खेलो
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128