Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 119
________________ 114 अनुसंधान-२४ पुत्रं भुजङ्गमधिगम्य चितां प्रविष्टा शोचामि गोपगृहिणी कथमद्य तक्रम् ? ॥ (पृ. ४९) आ वांचतां मने सोरठी लोकसाहित्यनो एक चारणी छंद सांभरी आव्यो, जे उपरना श्लोक, ज लोकसाहित्यिक रूप छे : "नृप मार चली अपने पियु पे पियु नाग डस्यो दुःखमें परि हुं गनिकाघर वास वसी करी हुं सुत संग भयो 'जरबेकुं चली नदी पूर बढ्यो निकसी तरी हं महाराज अब तो आहीर भई छाछको शोक कहा करी हुं ?" लोकसाहित्यनां आवां कवित्तोमां केटलुं बधुं भरवामां आव्युं छे ! अने एक मजानी वात, प्र.चि.कहे छे तेम, ते महियारणनां मही ते दहाडे वेरायां, तेनो रेलो नदीमां गयो, तेथी ते दिवसथी ते नदी 'मही' नदी एवा नामे प्रसिद्ध थई गई. लोककथाओ, प्रसिद्ध पात्रोने तथा प्रसंगोने जोडती रहीने पण, केटलुं बधुं आपणने आपती रहे छे ! (७) एक दिगम्बर आचार्य श्वेताम्बरोने जीती लेवा माटे गुजरातमांपाटण आवेला. सिद्धराजनां राजमाता मयणल्लादेवी पितृपक्षे कर्णाटकनां दिगम्बर मतानुयायी होवाथी तेमणे विचित्र ने विषम शरत राखेलीः श्वेताम्बरो हारे तो बधा दिगम्बर बने, अने दिगम्बरो हारे तो देशनिकाल पामे. आ पछी पण, पोतानो ज पक्ष लेवा माटे तेमणे राजमाता पर भरपूर दबाण-लागवग चलावेला, तेना प्रत्याघातरूपे श्वेताम्बरोए केटली ठावकाईथी काम लीधुं, तेनुं ट्रॅकुं पण स्पष्ट बयान प्र.चि.मां मळे छे : "अथ श्रीमयणल्लदेवी कुमुदचन्द्रपक्षपातिनी, अभ्यासवर्तिनः सभ्यांस्तज्जयाय नित्यमुपरोधयन्तीं श्रुत्वा श्रीहेमचन्द्राचार्येण 'वादस्थले दिगम्बराः स्त्रीकृतं १. बळी मरवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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