Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 113
________________ 108 अनुसंधान-२४ धिन विमलाचल रूखडी रे धिन ते सरस मोरो रे रात दिवस तुम्ह देखही रे लेखइ सोरासोरो रे ॥ ढाल १३/७।। लगभग समकालीन के पछी थोडा थोडा समयगाळे थयेला भक्तकविओनी कल्पना तेमज रचनामां केवी समानता अनुभवाय छे ! आमां समयसुन्दरजी उपर तो परमानन्ददासनी छाप होवानुं स्पष्टतया वरताय छे. पण ऋषभदास पर तेमनी छाप-छाया नथी तेम मानवं वधारे सुसंगत लागे छे. ऋषभदास सामे मंत्री वस्तुपाल (१३मो शतक) कृत आ श्लोक हतो, अने तेमां वर्णित कल्पना तेमणे पोताना पदमां उछेरी होय, तेम वधु उचित जणाय छे : "त्वत्प्रासादकृते नीडे वसन् श्रृण्वन् गुणांस्तव । सङ्घदर्शनतुष्टात्मा भूयासं विहगोऽप्यहम् ॥" (प्रबन्धकोशे पृ. ११६, वस्तुपालप्रबन्ध) -शी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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