Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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ट्रॅक नोंध
युग भिन्नः कर्ता भिन्नः कल्पना तुल्य बे रसप्रद उदाहरणो
(१) जगप्रसिद्ध कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुरनी एक कवितानो 'कोडियु' एवा शीर्षक तळे थयेलो गुजराती अनुवाद आवो मळे छे :
अस्त थातां रवि पूछता अवनिने सारशे कोण कर्तव्य मारा ? सांभळी प्रश्न ए स्तब्ध ऊभां सहु मों पड्यां सर्वनां साव काळां ते समे कोडियुं एक माटीतj भीडने को'क खूणेथी बोल्युं : 'मामूली जेटली मारी बेवड प्रभु !
एटलुं सोंपशो तो करीश हुँ'.... अने हवे जुओ श्री हेमचन्द्राचार्यनो रचेलो एक नानकडो श्लोक :
अस्तकाले त्विषामीशो निजं तेजो हविर्भुजे । राजेव युवराजाय राज्यसम्पदमार्पयत् ॥
(त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितमहाकाव्ये पर्व ७, ६/२८९) बन्ने महाकविओनी कल्पनाना केन्द्रबिन्दुमां केटलीबधी समानता छे !
(२) व्रजभाषी कवि परमानन्ददासनुं एक मधुर मधुर पद आq छ :
"क्यों न भये हम मोर वृन्दावन करत निवास गोवरधन ऊपर, निरखत नन्दकिशोर क्यों न भये बंसी कुलसजनी, अधर पिबत घनघोर
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