Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
June-2003
साह श्री जेठमल्लजी उद्यम करे भलो. परिवार सवें इण ठाम तिहां धर्मि मल्यो
कुलमां दीप समान दीपचंद साहजी द्रव्य व्यय बहुं कीध चिन्तामणि काजजी मनना मनोरथ आज फल्या सवि तेहना धर्मे हती जे बुद्धि विघन नहीं केहना संवत अढार पिस्तालिस मांहे सही महा वदी चोथ सार रविवारे लही तखत विराजे श्री अश्वसेन नरिंदनो वामा राणी - जात दरिसण करो तेहनो
Jain Education International
॥६॥
For Private & Personal Use Only
॥७॥
वाचक रामविजय गुरु गुरु समो तास सीस प्रतापविजयने नमो गुणविवेकी वीवेकविजय मुझ गुरु हरखें करो नित सेव जयकमला वरू इतिश्री चिन्तामणी पार्श्वनाथ स्तवन
॥८॥
॥९॥
105
Clo. जैन बोर्डिंग थलतेज रोड, अमदावाद - ३८००५४
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128