Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
98
तस भ्राता ईम विनवे, तवन रचो मन उलास ल०
आदि जिणेसर नरखता, मोजी सफल फली आस भ० से० || १३ || पा०
इति तवन संपूर्ण ।
कृष्ण-बलभद्र गीत
प्रस्तुत गीतनी नकल ला. द. भा. विद्या मंदिर, अमदावादना त्रूटक पुस्तक परथी करी छे. ते सारी स्थितिमां छे.
प्रस्तुत कृतिना कर्ताओ पोतानुं नाम के रचना संवतनो उल्लेख कर्यो नथी. भाषा अने लेखन परथी कृति १९मा शतकनी कही शकाय .
'अनुसन्धान - २३" मां आ पहेलां 'बलभद्रनी सज्झाय प्रगट थई हती तेज कथावस्तुने अति विस्तृतपणे तथा बलभद्रमुनिना वैराग्यनुं कारण विगते जणावी रचना करी छे. दुहा तथा चाल (चोपाई) बद्ध आ रचना खरे ज, वांचवी गमे तेवी छे.
हूंती - मांथी आडी शिकारी सिंहार संहार कुलखंपण कुलमां कलंक सूरे - शूराओ वहिलो वहेलो
शिल्हा
शिला / पथ्थर
विणसण
विनाश
दुयारी द्वारे वसे
असराल
पदम
-
-
—
-
·
बदले
अघरा शब्दोनी यादी
त्रिषा
करडीने
घणो
एक प्रकारनुं चिह्न
Jain Education International
-
—
-
-
वनह
घाय
खंधोले शेवा सेवा वेलू - रेती
बावना चंदन चंदननी उत्तम जात
कूया कूवा
सूत्रकार योडी
-
-
तृषा, तरस
कणसीने
-
वनमां
अनुसंधान-२४
घा
For Private & Personal Use Only
खभा उपर
-
सुथार
जोडी
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128