Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
षट्प्राभृतमां विभक्तिरहित शब्दरूप
कुन्दकुन्दाचार्यना नामथी प्रचलित षट्प्राभृत' ग्रन्थमां दर्शनप्राभृतमां २९ गाथाओ, चारित्रप्राभृत २६ गाथाओ, सूत्र प्राभृतमा २१ गाथाओ, बोधप्राभृतमा ५६ गाथाओ, भावप्राभृतमा १७५ गाथाओ, अनो मोक्ष प्राभृतमां ७५ गाथाओ आपवामां आवेली छे. जेमां केटलाक विभक्तिरहित प्रयोगो उपलब्ध थाय छे. छन्द जाळववा माटे विभक्तिनो लोप करवामां आव्यो छे. आवी प्रवृत्ति अपभ्रंश भाषामां वधारे जोवा मळे छे. तेथी अनुमान करी शकाय के तेना उपर अपभ्रंशनो प्रभाव जोवा मळे छे. आथी एम कही शकाय के आ कृतिओ कुन्दकुन्दाचार्यना समयनी होय तेम जणातुं नथी, अने तेमना समयनी होय ज, तो तेमनो समय घणो पाछळ लाववो पडे. आनां उदाहरण नीचे मुजब छे. अध्याय- पृ.नं. श्लोक शब्द प्रयोग प्राकृत मूळ रूप नाम दर्शन प्राभृत ७ ९ दोस(दोषान्)
दोसा परिवार (परिवारस्य) परिवारस्स तच्च(तत्वानि)
तच्चाणि पढम (प्रथमम्)
पढमं दंसण (दर्शनम्)
दंसणं चारित्र प्राभृत
दुविह (द्विविधम्) दुविहं -दोस (दोषान्)
दोसा णिस्संकिय (निःशंकितम्) णिस्संकियं णिकंखिय (निःकांक्षितम्) णिकंखियं उवगृहण(उपगूहनम्) उवगृहणं
वच्छल्ल (वात्सल्यम्) वच्छल्लं ३६ १० अवगृहण (उपगूहनम्)
अवगृहणं ३८ १५ पव्वज्ज(प्रव्रज्यायाम्)
पव्वज्जाए ३८ १७ -दंसण(दर्शनेन)
दंसणेण
Mrm w ,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128