Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 73
________________ 68 अनुसंधान-२४ गुणविजय साहिब गुणमणि दरीओ केवलकमलानिर्मल वरीओ । पावन परिवारइ परवरीओ पुण्य प्रसादिं भवजल तरीओ ॥५॥ एहवो एक श्रीसांतिनाथ अनाथनो नाथ मोक्षमार्गनो साथ । सोलमो तित्थंकर पांचमो चक्रवर्ती । अम्हारि कुलगोत्रई मानीइ पूजीइ अरचीइ ॥६॥ ॥ इति श्रीशान्तिनाथ-श्लोकः ॥ ★★★ (१२) श्रीगुणविजय-विरचित ।। श्लोकबन्धेन श्रीशद्वेश्वरपार्श्वनाथ-स्तवनम् ॥ ब्रह्मानी धूआ देवी ब्रह्माणी करि गुणग्राम केवलनाणी । सुर नर किन्नर राय वखाणी अपछरा गाइ ऊलट आणी ॥१॥ रायहंस बिठी सुर ठकुराणी वाणी ते बोलइ अमीय समाणी । गाजइ ते गोरी गुणमणि खाणी जागती ज्योति जगमाहि जाणी ॥२॥ पुस्तक पातक-वल्ली-कृपाणी कमल कमंडलनी अहिनाणी । कच्छपी वीणा शोभित पाणी वेद पुराणि प्रगट गवाणी ॥३॥ कासमीर मंडलमां राजधानी धीरज ध्याइ धरी सावधानी । तूसइ ज तेहना दालिद्र कापइ अद्भुत वरु वाणी ज आपइ ॥४॥ जिहां दृष्टि पडी तिहां किणि सार केसर थाइ मणना हजार । विण दृष्टि हुइ कसुबमाल ए वात जाणइ बाल गोपाल ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128