Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
67
June-2003
ए श्रीदशा[र]णभद्र ऋषिराय - नामइं आनंद थाय । इंद्र हराव्यो पाय नमाव्यो गजगति गामी केवलज्ञान-पामी ।
मुगतिं पधार्या मई मनि धार्या ॥२१(२२)।। ॥ इति दशार्णभद्रराजर्षि-श्लोकः ॥
★★★ (११) श्रीगुणविजय-विरचित
॥ श्रीशान्तिनाथ-श्लोकः ॥ पुर हत्थिणाउर कुरु देश माहि
इक्खागवंशी पुण्यप्रवाह । श्रीविश्वसेन कुल गौरकिरण ।
अचिरादेवी वरकूखि ज रयण ॥१॥ सोलमो तित्थंकर संतिनाथ
पांचमो चक्री शिवपुर साथ । मोहन मृगलंछन मनोहार
शिववधू कंठइ नवसर हार ॥२॥ लाख वरसनउं प्रभुतणउं आय
नाम जपंतां नवनिधि थाय । चा(च)रणिं पारेवो जेणि राख्यो
कुंण दयालू ए सम दाख्यो ॥३॥ नगरि रतनपुरि जिन जयवंतो
सलखणपुरि प्रभु गुणवंतो । दहीओद्र नगरई देव दीपंतु
महिमाइ हरिहरब्रह्म जीवंतु ॥४॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128