Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
June-2003
69
एहज त्रिपुरा तोतला बाली एहज काजी(ली) ए महाकाली । एहज कालागिणि हरसिद्धि एहज अंबा ए सिद्धि बुद्धि ॥६॥ सोपारा-पाटण माहिं मंडाण अज्झारी गामि वली अहिगण । रंगि ज रही त्रिभुवन्नि व्यापी भगतनई भावि भल बुद्धि आपइ ॥७॥ एहज माता धरीय उल्लास मुझ मुखकमलिं करु निवास । हुँ गाउं प्रेमि पासकुमार श्रीआससेन कुलसिणगार ||८|| सघला ते मंडलमां सिरताज अधिकी ज गूजर खंडनी काज । तेह माहिं वारु. वढीआर सोहइ मोहन मानवनां मन मोहइ ॥९॥ नगर संखेसर निरमल नूर प्रगट्यउं ज पुहविं पुण्यि पडूर । जिनहर मंदिर अति सुविसाल बावन्न देहरी झाकझमाल ॥१०॥ पासजी बइठा संकट चूरइ प्रगटप्रभावि परता ज पूरइ । यादव दलनी जरा निवारी सबल समहुतु कीध मुरारी ॥११॥ नमि विनमीइं एहज आराध्यो साजण सेठ एथी ज वाध्यो । रवि शशि सोहम नई धरणिंद सेवइ विशेषई पासजिणिंद ॥१२॥ को छत्रीआली चड्या चोसाल घम घम घमकइ घूघरमाल । जोतर्या धोरी तुरंगमताजी रेवत रविना जाइ ज लाजी ॥१३॥ को चडी आवइ जन चकडोल पालखी बइठा करइ कलोल । गजरथ घोडा फोज बनाई सार सुखासण सबल सजाई ॥१४॥ भेरी नफेरी नींसाण वाजइ नादि करी नइ अंबर गाजइ । वीणा तंबूरो ताल मृदंग गंधर्व गाइ हुइ उछरंग ॥१४॥ तंबू विराजइ तिहां पंच वरणी सहुइ प्रसंसइ ए भली करणी । थानक थानकना बहु संघ इंम आडंबरइ आवि उतंग ॥१५॥ वर्ण अढारइं लाभइ न पार सहु भरइ पूजी पुण्य भंडार । माणस हेजम कुंण करइ मान सहज सुरंगा द(दे) घण दान ॥१६॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128