Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 93
________________ षट्प्राभृतमां दन्त्य नकारना प्रयोग - डॉ. शोभना आर. शाह दिगम्बर परंपरामां आचार्य कुन्दकुन्द सौथी प्रसिद्ध अने सर्वाधिक पूजनीय आचार्य मानवामां आवे छे. भगवान गौतमस्वामी पछी तरत ज कुन्दकुन्दाचार्य- स्थान आवे छे. कुन्दकुन्दाचार्यना नामथी प्रचलित षट्प्राभृत' (दर्शन, चारित्र, सूत्र, बोध, भाव अने मोक्षप्राभृत) उपरांत लिंगप्राभृत, शीलप्राभृत, रयणसार अने बारहअणुवेक्खा आ पांच ग्रन्थ प्रकाशित करवामां आव्या छे. तेमना रचित दर्शनप्राभृतमां २९ गाथाओ, चारित्र प्राभृतमा २६ गाथाओ, सूत्रप्राभृतमा २१ गाथाओ, बोधप्राभृतमा ५६ गाथाओ, भावप्राभृतमां १७५ गाथाओ अने मोक्षप्राभृतमा ७५ गाथाओ आपवामां आवी छे. षट्प्राभृतमां प्रारंभिक दन्त्य नकार अने (सामासिक') मध्यवर्ती दन्त्य नकार मळे छे. शौरसेनी अने महाराष्ट्री प्राकृतमां दन्त्य नकारनो प्रयोग सामान्य रीते जोवा मळतो नथी. श्वेताम्बरोना अर्धमागधी आगम ग्रन्थोमां प्रारंभमां दन्त्य नकारनो प्रयोग बहुलताथी मळे छे, अने क्यारेक क्यारेक मध्यवर्ती नकारनो प्रयोग पण मळे छे. दिगम्बर जैनोना शौरसेनी भाषाना ग्रन्थोमां प्रारंभमां अने मध्यमां दन्त्य नकारना बदलामा प्रायः मूर्धन्य णकार ज मळे छे. परंतु षट्प्राभृतमां केटलाक एवा प्रयोग पण मळे छे जेमा प्रारंभमां अने (सामासिक) मध्यवर्ती दन्त्य नकारना माटे दन्त्य नकार मळे छे. पालि त्रिपिटक, प्राचीन शिलालेख अने अर्धमागधी भाषाना प्रयोगोने जोतां ए स्पष्ट छे के प्राचीनतम प्राकृत रचनाओमां दन्त्य नकार यथावत रहेतो हतो. परंतु पाछळथी प्राकृत व्याकरणना नियमोना प्रभावमां आवीने दन्त्य नकारने मूर्धन्य णकारमां बदली देवामां आव्यो. आ दृष्टिथी षट्प्राभृतमां दन्त्य नकारवाळा प्रयोग ध्यान आपवा योग्य छे जे प्राचीन परंपराथी प्रभावित छे अने आ प्रमाणे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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