Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
38
अनुसंधान-२४ पंडित गणिवर मुनिवर सूंदर जिति ज्यत्यनी मनि भाया श्रीहीरविजयसूरीसर केरा सपरिवार सूखदाया रे ||ज्ञ सब० ॥ संवत सोल एकावन(व)छरि, श्री निजामपुरि आई तपगछपंडित गिरुआ सीसि वेली विजयसू गाई रे ॥६ सब० ॥ जब लगि मेरु मही रवि शशि नग सागर वाहनि राजइ हीरविजयसूरी कहइ शंकर जस पडहु तब गाजइ रे
सब जगकु तारण पाऊ ॥ इति श्रीविज[य]वल्लीरास संपूर्ण ॥
कठिन शब्दोनो कोश
दूहा
परीआ व्यवरी
पूर्वज
विवरी-विवरणपूर्वक
ढाल
पाहि वीरु प्रीआ
करतां वीरो-भाई परिया-पूर्वजो
दूहा
वहुरसि
व्यवहार-व्यापार करशे
३
.
लुंछन
न्युछनक-लूंछणुं (गुरु सामे धरीने हाथी घोडा वगेरेनुं याचकोने अपातुं दान)
ढाल
व्यवध विविध सोविन सोवन-सुवर्णतुं असमान आसमान-आकाश झंडाल नेजा झंडावाळा नेजा-ध्वजा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128