Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
June-2003
4
.
थूलभद्रनइ जंबूनइ पगि लागीइ रे, धन्य धनो अणगार । बालपणि पणि जागी वयरागी थया रे, ते मुनि वयरकुमार ॥१६॥भो०॥ नर नई नारी हृदय विचारी चेतीइ रे, छांडी विषयविकार । मेरुविजय बुध सीस पयंपइ पामीइ रे, शीलिं शिव निरधार ॥
ऋद्धिविजय जयकार ॥१७॥ भो०॥
॥ इति नारीस्वरूप-प्ररूपण-स्वाध्यायः ॥
(३) सालिग-विरचित-श्रीबलभद्रऋषि-सज्झाय द्वारिका बलती नीकल्या बि बंधव एक ठाय । तृषा उपनी कृष्णनई बलभद्र पाणी पाय ॥१॥ तव बलभद्र लाव्यो नीर तुंतो सूतो साहस धीर । पोढ्यो छइ वडतणी छाया कमलाणी कोमल काया ॥२॥ आहेडी जराकुमार खेलि पारधि वनह मझारि । कृष्ण पाए पदम जव दीठउं जाणिउं ए सावज बिठउं ॥३॥ लेई धणुहडी कीधउं प्राण ताकी नइ मेहलिउं बाण । डावि पाइं परम ज लागओ करली नइ कान्हड जाग्यओ ॥४॥ जोइ जरा रे कुमर तिहां जाइ सारंग ऊठ्यो विललाई । देखी बंधव दुःख अपार कही धिग धिग जराकुमार ॥५॥ मई पापीई बंधव हणीओ तव माहवइ एणि परि भणीओ । हवइ जा तुं वार म लावइ बलभद्र जिहां लगि नावइ ॥६॥ माहरु कटक देजे नींसाणी इंम कहिजे युधिष्ठिर वाणी । वल्यो जराकुमर ततकाल कृष्णनइ तव पहुचु काल ॥७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128