Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-२४
कष्ट मांहि पडियां छोडवि ओडवइ आंणी आप । तेह मित्रसुं नेह संडीउ जिम छूटीइ सही पाप ॥१९॥ नित्य मित्र वलतुं बोलिओ खोलीओ मननो भाव । मई तुं तो रखाइ नही मम करसि एवडी राव ॥२०॥ व्यवहार एहनु आकरु कां करो करगर कोडि । नासतां इहां छूटिसि नहीं ए वात सघली छोडि ॥२१॥ मुझनि ति देणुं हतुं ते आपिउं अनिवारि । ताहरु करिउं तइं पामीउं पण न थाइ मइं सार ॥२२॥ हवि इहांथी जा परु मई छोडिओ तुझ नेह । महिंतु सदा जस पोखतु तिणि पणि दीधु छेह ॥२३॥ रायना जणना हाथमां आपवा लागो जाम । महिंतु विमासि मन्नसुं भलि नींबडिओ ए आम ॥२४॥ उतावलो तिहां आवीओ पर्वमित्र पासिं सोइ ।। ते वात सघली तिहां करी मनस्युं धरी दुख होइ ॥२५॥ रे दूख थकी अलगा करु बंधव हवि जस थाउ । राजा रीसाविओ पीडस्यइ वहिला ते बाहरिं धाउ ॥२६॥ मन राखवा महिंता तणुं सो दीइ मुखि संतोस । पण कष्ट कारणिं आवीओ तेह नहीं ताहरु दोस ॥२७॥ रात दिवस रलतु घणुं ते आपतु अह्म सर्व । लेवाइ नहीं दुख ताहाँ स्युं आपाइ तुं गर्व ॥२८॥ अर्जना कीधुं ताहरूं धन भोगवू अह्मे आज । पणि कष्ट ताहरु नवि टलि तुं मिलइ मनसु लाज ॥२९॥ एणी युगति मुखि संतोषीओ महिंता प्रति तेणि ताम । महिंता तणुं पणि तेह थकी नवि सिद्धए को काम ॥३०॥
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