Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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पल्लीपति थई साथ लूटाव्या ऊजाड्या पुर गाम । मारगई पंथी रांक भीषाव्या कीधां कोडि कुकाम ॥४२॥
अनुसंधान-२४
पर प्रांणीनी पीड न जांणी दया लगार न आणी । जिम तिम पर धन कीधां हाणी लक्ष माल लीधा ताणी ॥४३॥
इम अन्याय करी परि परिना मिं धन मेलिउं जेह । नित्य मित्र नइ पर्व मित्र नइ अरथि आपिउं तेह ||४४ ॥
पणि प्रस्ताव पडि ए निसत नवि नींमड्या लगार । माहरु कंपि एणि न जाणिउं कसी न कीधी सार ॥ ४५ ॥ ताहरु एक वार मिं अलवि कांइ न कीधुं काज । तो तुझ आगलि स्युं दुख दाखुं आवि मनस्युं काज || ४६|| जुहार मित्र वलतुं इम बोलि लाज न कीजि भाई । सावधान सही थाजे सुंदर जोजे माहरी सगाई ॥४७॥ प्रेम धरी ते साथिं मत मलयो तेहनुं कहिउं म करजे । लंपट जांणी तुं ओसरजे राजाथी मत डरजे ॥४८॥
ए राजानुं जिहां नवि चालि तिहां हुं तुझनि मेहलउं । आवि बिसि बंधव मुज खंधि ताहरी चिंता ठेलउं ॥ ४९ ॥
जो पणि माहरि खंध चढीनइ वलतुं जोईस साह । तो राजा ततकाल धरी नइ फेरी मागसि नाउं ॥ ५० ॥
तेह भणी सावधान सही थाजे बांधव बहु स्युं कही । संधि न रहि बिहु साथि मलतां दो मारगि किम जईइ ॥ ५१ ॥
महितो कहि एवडुं मत कहिसु तेह नि प्रेमि हुं द्राओ । तेहस्युं नेह हवि स्युं कीजइ भलि मित्र तुं पाओ ॥५२॥ जे तुम्हे कहिस्यु ते परि करस्युं बलिहारी तुझ नामि । ए राजा पीडी जिहां न सकि मुझ मेहलो तेणि ठामि ॥५३॥
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