Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ June-2003 तुम्ह बिछूरि बहू दिन भए लाल हम क्यु रहि ना जाइ पूछे पवरे जोसी जांनां श्री गुरुकइ कब आई श्रीगुरु किधु कब आवइ सब जपे मासा ( ला ? ) पावइ || ३ मो० ॥ यू गूमांन न कीजीइ लाल रूपं जाई बीदेस हम खिजमतथिं कछूअ न चूके ईतनी चढाई क्युं रीस ईतनी चढाई क्यु रीस जपि गुण तीहा नीसदीसइ || ४ मो० ॥ साहिब तेरा हीरजी लाल आणि क्युं मनमांह निपट निमोह न होईई साजन महिर न आतु मनमांहि महिर न आतु मनमाहींआं तपति उ नारि बिन छहीआं ( ? ) ॥५ मो० ॥ चलन न देता दोही कूं लाल जु जानत विसी घात हूं बूझत तूम निठोर निरागी सत न रहिईन बातु गूनहनबाढि कछू गातुं ( ? ) ||६ मो० ॥ श्रीविजयसेनसूरीसरु रे लाल सब मुनी के सिरताज शंकर तेज वधारण लाला चलनकू ढील न काज चलन कूं ढील न कीजइ सब जन आनंद सू दीजइ ॥७मो० ॥ ढाल १५ ॥ राग धन्यासी ॥ मिं पाठ रे सब जगकु तारण पायु हीरविजयसूरीसर गातां हैअडइ हरिष न माउ रे ॥१॥ श्रीविजयसेनसूरीसर ग (गा) तां, भणे रसना अंमृत पाउ चरण कमल मन ज्युं मधुकर पति पूरण प्रेम अथाउ रे ॥२ सब० ॥ श्रीधर्मसागर मोटा वाचकवर विमलहरिष उवझाया शांतिचंद वाचक गुणसागर परिघल पून्यि पाया रे || ३ सब० ॥ 37 सकलकलानधि भविकजनबोहक कल्याणविजय गुणधारी सोमविजय उवझाय पगट मल भाणचंद सी जोरी रे (?) ॥४ सब०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128