Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ June-2003 35 पूरव वार नवांणू आदिल, विमलाचलि पुहुता रे । नेम विना त्रेवीश तीर्थंकर, सूरवर मूनीवर जोता रे ॥७॥ रायणि रूखतलि पद ठावी, धावी निज मूनि ध्यांनां रे । भरत प्रमुख ऊधार घणेरा, बहुत कहुं क्या मानां रे ॥८॥ कंकर कंकर सीध अनंता, होइ गया नगराजि रे । तीरथ महिमा वधारि श्रीगुर, श्रवजन तारण काजि रे ॥९॥ नरग निगोदि अनि तीरजंचाथी तुं कुगति निवारी रे । नरवर देव गती सूख साधि, एणि गिरि चढिए वारी रे ॥१०॥ इम ऊपदेस लही श्रीगुरथि, मूंगता सोथि (?) पावे रे । देस विदेस केरे संघपति हीर साथि लि आवे रे ॥११॥ शंकर क्यु मनि भावि श्रीगुर, वड संघपति जयधारी रे । रंगवधारण तेज वधार[ण] कीरति निति कहूं तोरी रे ॥१२।। ढाल १३ ॥ राग मेवाडो ॥ मेरा मनपंकजका भमरला रे, श्री विमलाचलि वासो रे । मोह मांडि छांडी रहु रे भोगी लीलविलासो रे ॥१ मेरा० । हूं तरसू तूझ देखवा रे तू नवि आणे चीतो रे । एकपखु ए नेहलु रे, निपट न मोही मीतो रे ॥२ मेरा० ॥ आदिल आदिल मि जपूरे, ज्यु बापीयडा मेहो रे । लिखइ न एक संदेसडु रे, एकपखु ए नेहो रे ॥ ३ मेरा० ॥ डूगर ऊपरि डूगरी रे तिहां ति कीधु वासो रे । योग धरी अलगु रह्यु रे, तू इह भूवन करइ वासो रे ॥४ मेरा० ॥ मातपिता जेणई जनमीउ रे, लाड लडायु जेहो रे । तासतणउ तूं न हूउ रे तु हम नाणूं छेहो रे ॥५ मेरा० ॥ १. सुगती सो थि(दी?)पावे रे (?) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128