Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 50
________________ June-2003 दृढप्रहारिं चिहुं जीवनो हत्या पातक कीधो रे । अति उपशम मनमां धरी सुगतिमाहिं जई सीधो रे ॥ २८ ॥ उप० ॥ नाण उपजतो हारिओ एक पहरमां कोधइ रे । श्रीदमसार मुनीसरइ उपशम व्यसन विरोधइ रे ||२९|| उप० ॥ ससरि सीस प्रजालीउं खमिउं गयसुकुमालइ रे I ततखिण केवल पामिउं करम कुकठ परजालइ रे ||३०|| उप० ॥ करड - कुरड मुनि तप तपइ रहीअ कुणालानइ खालि रे । क्रोधइ संयम हारिउं नींगमिओ भव आलि रे ||३१|| उप० ॥ नीलि वाधरि वीटिउं रिषिसर सोवनकारि रे । खमयाथी मेतारजइ शिवपद लाउं शमसारि रे ||३२|| उप० ॥ क्रोध थकी कूलवालूइ सुव्रत थूभ पडावी रे । गणिका रसरंगिं करी हुई तस दुरगति चावी रे ||३३|| उप० ॥ खंधक रिषिनी खालडी विण अपराध ऊतारी रे । खमयाथी सवि दुख सही पुहता मोख्य मझारी रे ||३४|| उप० ॥ नवदीक्षित शिर ऊपरिं सूरिं कीध प्रहारो रे । खमयाथी केवल लह्यउं धिन धिन ए अणगारो रे ||३५|| उप० ॥ संब- प्रद्युन्न संतापिओ क्रोधई तप तन टाली रे । द्वीपायन रिषि द्वारिका मूल थकी परजाली रे ||३६|| उप० ॥ चंद्रावतंसक उपशमि रहिओ काउसग ध्यानिं रे । दासी दीपक सींचतां पोहतो अमर विमानिं रे ||३७|| उप० ॥ 45 · दुष्कर दुष्कर गुरु काउं निसुणी एक मुनी कोप्यो रे । थूलभद्रस्युं मच्छर धरी पूरव तप जप लोप्यो रे ||३८|| उप० ॥ Jain Education International चंदनबाला मृगावती माहोमाहिं खमावी रे । उपशमथी केवल लह्यउं कडूआ क्रोध समावी रे ||३९|| उप० || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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