Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 49
________________ 44 एक ऊणा पंचसइ खमयाथी खंदग सीसो रे । पालक पीलंतां थया अंतगडा विण रीसो रे || १५ || उप० ॥ अनुसंधान-२४ अगनिकुमार क्रोधइ थया खंधगसूरि सुजाणो रे । दंडग देश प्रजालिओ दूरि थयुं निरवाणो रे ||१६|| उप० ॥ अच्चकारी नारीइ प्रिउस्युं प्रेम विगाड्यो रे । क्रोधतणइ परवसि थइ आतम दुखमाहिं पाड्यो रे ||१७|| उप० ॥ पंच वार पंचक लह्युं क्रोधइं नाविक नंदइ रे । छट्टि सवि मुनि खामणां देता सुक्ख आनंद रे || १८|| उप० ॥ वभासनई सागरतणो क्रोधइ सीस प्रजाल्यु (ल्यो) रे । खमयाथी सुरवर थयो द्वेषथी मन वाल्यो रे ॥१९॥ उप० ॥ पगतलि आवी देडकी आलोओ कह्युं सीसई रे । थविरइं थंभि आफली मरण लाउं अतिरीसइ रे ||२०|| उप० ॥ भव त्रीजई विषधर थयुं वीरइ दरिसण दीधुं रे । खमयाथी चंडकोसिइ वेगिं सुरपद लीधुं रे ||२१|| उप० ॥ कुण अनारज बिहुं जणां माहिं कहो मुझ देवो रे । वढतो साध सुरइ कह्यओ अनारज सयमेवो रे ||२२|| उप० ॥ खमावंत दमदंतनइ कौर [व] कर्यओ उपसरगो रे । कांईअ न चाल्युं अरियणइ मुनि करि खमयानुं खडगो रे ||२३|| उप०॥ अमरभूर्ति (मरुभूति) खमया थकी तित्थंकर पद साध्युं रे । कमठासुरनई क्रोधथी दुरगतिनुं फल बांध्युं रे ॥२५॥ उप० ॥ शय्याचालक सवणडे क्रोधइ तरुउं नाम्युं रे । कांने खीला ठोकिया वीरइ ते फल पाम्युं रे ||२६|| उप० ॥ पुनरपि खमयाथी सही वेयण अति अहियासी रे । अनुक्रम केवल पामिउं करम गयां सवि नासी रे ||२७|| उप० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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