Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 51
________________ 46 अनुसंधान-२४ क्रोधइ निरबल बलदीओ धरती ठेले दार्यो रे । ते बंभण सवि बंभणे जाति थकी निरधार्यो रे ॥४०॥ उप० ॥ सूरि सुहस्तिक वयणथी प्रेतवनि जई रहिओ रे । त्रिण्य पहर सीयालणी कर्यओ ते उपसरग सहिओ रे ॥४१॥ उप० ॥ ते अवंतीसुकुमालनइ खमयाथी शुभध्यानइ रे । ततखिणमाहिं ऊपनो नलिनीगुलमविमानि रे ॥४१ (४२) उप० ॥ क्रोधई कडूउं तुंबडूं दीधुं रोहिणि नारिं रे ।। अनंत संसार उपारज्यु मुनि गयु मुगति मझारि रे ॥४२ (४३)।।उप० ॥ तिम नागश्रीइं क्रोधथी कीधलो संसार अणंतो रे । पोहतो पंचम अनुत्तरि धर्मरुचि तेह मा(म)हंतो रे ॥४३(४४)||उप०|| झांझरीआ रिषिरायनइ रायई उपसरग कीधो रे । अंतगडो केवल लही झांझरिओ रिषि सीधो रे ॥४४(४५)|उप०।। देह चिलातीपुत्रनो फाल्यओ वज्र घीमेलि रे । अष्टम सरगि सुर थयु उपशमरसतणी रेलिं रे ॥४५(४६)।उप०॥ भगतो श्रीमहावीरनो सर्वानुभूति निरीहो रे । उपसर्ग सही उपशम थकी सहसारइं सुर सीहो रे ॥४६(४७)।।उप०॥ अच्युत सुर थयु उपशमं श्रीसुनख्यत्र अणगारो रे । वीर कुशिष्यइ ते दह्यओ न चढ्यओ क्रोध लगारो रे ।।४७(४८)।उप०|| गोसालो कृत क्रोधथी भमस्यइ काल अनंतो रे । मुंकी लेश्या तेजनी करवा जिनजीनो अंतो रे ॥४५(४९)।। उप०॥ इंद्रइ जेह प्रसंसिओ अमरे बेहु परि परिख्यओ रे । विविध वेयण वयणे करी कहीइ क्रोधइ न निरख्यओ रे ॥४९(५०)।उप०॥ ख्यमावंत सिरसेहरो राजा श्रीहरिचंदो रे । अवर न एहवो निरखीओ साहस दिवस दिणंदो रे ॥५०(५१)।।उप०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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