Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 41
________________ 36 अनुसंधान-२४ मति तुं सब कर्यु सरिखू रे, न लहिउ आप पीआरु रे । भरत सरीखा भोलव्या रे, वेलत- कीधी सारो रे (?) ६ मेरा० ॥ धिन विमलाचल रूखडी रे, धिन ते सरस मोरो रे । राति दिवस तुम्ह देखही रे, लेखइ सोरा सोरो रे ॥७ मेरा० ॥ में रीझू (?) परदेसी प्राहुणा, मो दिलमंदिर आवो रे । सकलसु खावी सूखडी रे प्रेम करी तूं लावे रे ॥८ मेरा० ॥ आदिल कहितां उहुलसूं रे, देखू तोरी वाटो रे । घडीअ घडीअ आवी मिलूं रे, पंथ न सरज्या मोटा रे ॥९ मेरा० ॥ ताहारि मनि त्रिभोवन वसि रे, माहारि मनिं तू एको रे । वीनतडी कोडि लखू रे, कहित न आवि छेको रे ॥ १० मेरा० ॥ दीठो लेसूं भांमणां रे, ललीय ललीय नमूं पाय रे । निठोर नाथ मनावस्यूं रे सेत्तुंजगिरि तु नाया रे ॥११ मेरा० ॥ शंकर कर जोडी कहि रे, आदिल लील भूआल रे । आशा पूरे अम्हतणी रे, न्व (?)(भ) वि भावन प्रतिपालो रे ॥१२ मेरा०॥ ढाल १४ ॥ राग गुडी ॥ दूहा ॥ आनंदि सब जब जगत तणउ संघ मिली गूणधाम । श्रीविजयसेनसूरि प्रति, लेख लिखइ अभिराम ॥१॥ ग्वालनी योबन गरब गहेली - ए ढाल | मोहन हीरजी केरा लाला, जपि..... गि तो गूनमाला अतिहि निरागी तूम्ह होए, अकबरशाहतूं मोहे ॥१ मोह० ॥ चालि : गूजरथि कागद लिखि लाल, संघ सो वाल हम हा तरसि (?) तोही दरसि तोही दरसनकू खबर न करहू क्रपाली, खबर न करहू क्रपाला संज्यभो... चूआला ॥२ मोहन० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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