Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ 22 अनुसंधान-२४ भाणचंद खासो हइ पंडित मेरे दिल हुं सुहावइ । जगतगुरु थु, तेरे नमुने हम बगसीसुं पावइ ॥६॥ शांतिचंद वाचक सइ हाथिइं श्रीगुरु शाहकुं देवइं । दिल्लीपति सुलतान अकब्बर . . . . . . . . . ||७|| प्यार करी तब हुत परगने घोरे हाथी [न]जराना । उर कछू महि मांगु सो भी हम तुमहीकुं दीना ना ॥८॥ ढाल ६|| राग मारू || दूहा ॥ श्रीहीरविजयसूरि प्रतिइं श्री अकबर सुरताण । बहुत दिवसनइ अंतरि, आपि सीख प्रयाण ॥१॥ चतुर शरोमणि बुद्धिनिधि, अकबर-गुरपद जेह । शेष श्री अव्वलफजल शाह प्रतिइं कहि तेह ॥२॥ जब लग श्रीगुर हीर है, तब लग दिली अमारि । अरज करत हम जिहि रहि, तिहां काउं होवइ मारि ॥३॥ श्रीहीरविजयसूरिंद प्रति, जे जे दीधा बोल । शंकर कहि सोई वहुँ, सांभलतां रंगरोल ॥४॥ ढाल ॥ शाह अकब्बर गुर प्रतिइं करि ग्रही तव देवइ मान । जीव न मारुं तुमनई ना(ता?)के हो देवइ फुरमान ॥१॥ शा० ॥ प्रथम वार श्रीरवितणा, नसदिन हो न न कहिणा मारि । गौ-गोवछा केरडा ताकुं हो ज(जा)णुं तुम आधार ॥२॥ शा०॥ वाघ वडे हइ सीगलीउ रची ते हो मोटे कलि हार । साऊषे न लुंहा न न बाहुं, हो यमुना मइ जार ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128