Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-२४ शंकर तस प्रणमइ हेजिई, श्रीहीर तपइ तपतेजिइं । गिरुइ कीआ ध—मु गाला, वसुधा भई मंगलमाला ॥१८॥
ढाल ८|| सामेरी ॥
दूहा ॥ शांतचंद वाचक प्रतिइं, कहत अकब्बर शाह । श्रीविजयसेनसूरिंद किउं नाया कहत उछाह ॥१॥ तुम याई ए वथुउ (?)- हीर पेस क्या लेउ । वाचक कहि श्रीशाहजी, विमलाचल गिरि देउ ॥२॥ सेत्तुंज सयल मुकी तमु (?) तुम ही दीया गिरनार । श्रीहीरविजयसूरि पेस कीय, दीइ फुरमान उदार ॥३|| ढूंबा जेउर जाजीआ, अकर करि जे कोइ । सूली फांसा टालया, भुमथी(?)छंडे सोइ ॥४॥ भाणचंद उवझायका, वेगिइं देयो वास । हुआ पहुचाई हीरकुं कुछ्य मांगतहु हम पासि ॥५॥ आदमुं मोकलाय करि, वाचक गूजर देसि । आवइ बहु उछवसहित, विजय बुलाव नरेस ॥६॥ हीर पाय प्रणमी करी, महीतलि सो फुरमान । सेत्तुंजगिरि मुगतु सदा, सब जीवकुं अभयादान ॥७॥ रायधनपुरवरमांहि तव, श्रीगुर अछिचुमासि । श्रीविजयसेनसूरि तेडवा, वड मेवडा उल्लासि ॥८॥ आइ कहि श्रीजगत्रगुर, तुमे संभारु बोल । श्रीविजयसेनसूरिंदकुं भेजें उहि रंगरोल ॥९॥
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