Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 37
________________ 32 अनुसंधान-२४ हीर बीर(बर) सावो त्रिभोवन काजी के विसे धोरी (?) शंकर कहत कोडि गुण तुम्हमि हूं क्युं बरनूं मति थोरी ॥७ मुनी०।। ढाल ११॥ राग मेवाडो ॥ शाह मुराद अक)बरसुतन, गाजि अम्हदावादि । पंडित गूणचंद पासिहि पटु फिरावि नादि ॥१॥ हीर खजांनि बिमलगिरि जाणी जगतमझारि । .... संघ चलावही, जे कूता (हूंता?) संसारि ॥२॥ धन्यविजय पंडित प्रथि, सेत्तूंजगिरि नूं काम । जतन करेवा सुपहीसू, केइ न मगि (मागे?) दाम ॥३॥ पूरव पछिम उत्तरा दक्षण बहुला देस । विवध सजाई वाहनां, विवध संचऊर वेस ॥४॥ लाहूर ओर नीलावभमल(?) गौड चौड करनाट । बेंगाला काबिल प्रटे, भोट छोट उ लाट ॥५॥ कासमीर खूरसाणक, शंधू सव लेख ताई । मूलतांनी ग्वालेरका संघपति सब आई ॥६॥ मरुधर मालव स(सो)रठी, मेवाडी मनरंग । वागड नमीआडा तणां दख्यण केरा संग ॥७॥ पाटण अमदावाद उर, खंभाइत गूणगेह । संघपति गूजर तणा, सो दानि वरीषि मेह ॥८॥ चुरासी बंदिरतणा, सोरठ संघ विनाणि । श्रीहीरविजयसूरि आपथिं धिन विलसि न न कांणि ॥९॥ (ढाल |) मूवी(पुहवी?)के भूषनां सेजि पधारीइ सब भविका प्रति पार ऊतारीइ । संब(घ) दूख दूरीआं दूरि निवारीइ तूम्ह हा बोलावन अंवर उछारीइ ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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