________________
98
अनेकान्त 61/1-2-3-4
परिणमन भगवान के ज्ञान के अधीन नहीं है। जिस रूप में वस्तु स्वयं परिणमित हुई थी, हो रही है, और होगी; भगवान ने तो उसको उस रूप में मात्र जाना है। ज्ञान तो पर को मात्र जानता है, परिणमाता नहीं। 105 बहुत अच्छी बात है, कम-से-कम लिखित रूप में तो इस सत्य को हमारे आधुनिक नियतिवादी बन्धु भी स्वीकार करते हैं कि केवलज्ञान के साथ ज्ञेयों का कोई कारण-कार्य सम्बन्ध नहीं है।
किन्तु, 'प्राचीन नियतिवाद' का कोई समर्थक यहाँ आपत्ति प्रस्तुत करता है : "हमारी तरह, स्वतन्त्र नियतितत्त्व को आप मंजूर नहीं करते, क्योंकि आप दावा करते हो कि आपका सर्वज्ञकथित कर्मसिद्धान्त समस्त लौकिक और पारमार्थिक वस्तुस्थितियों की सटीक व्याख्या कर सकता है! मात्र सर्वज्ञ के ज्ञान की अपेक्षा नियति मानते हो! वहाँ भी, एक ओर, आप सर्वज्ञ के ज्ञान को वस्तुओं के परिणमन का कारण नहीं मानते, और दूसरी ओर, एक गाथा का हवाला देकर नियति को पाँच कारणों में गिनाते हो? आपकी मान्यताओं में क्या यह अन्तर्विरोध नहीं है? इस अन्तर्विरोध को दूर करने का एक ही तरीका है - आपको हमारी तरह नियतितत्त्व को स्वीकार कर लेना चाहिये।"
हमें नहीं मालूम कि हमारे आधुनिक नियतिवादी बन्धुओं के पास उक्त आपत्ति का युक्तियुक्त समाधान है कि नहीं। यदि है, तो हम भी जानना चाहेंगे कि वे क्या उत्तर देते हैं। यदि नहीं, तो हम निवेदन करना चाहेंगे कि ऊपर के अनुच्छेदों में किये गए विस्तृत एवं निष्पक्ष विश्लेषण के आधार से, इस आपत्ति का न्याय, युक्ति एवं आगमानुकूल तरीके से अवश्य ही निरसन किया जा सकता है।
उपर्युक्त परमती, प्राचीन नियतिवादी को उत्तर देने से पहले, तनिक एक प्रश्न पर आपस में विचार कर लें। सन्मतिसूत्र की गाथा में उल्लिखित पाँचों कारण अथवा हेतु क्या एक ही कोटि (category) के हैं? आगम के आलोक में विचार करने पर पाते हैं कि नहीं, पाँचों हेतु एक कोटि के नहीं कहे जा सकते; क्योंकि परमार्थ दृष्टि से तो उपादान ही एकमात्र ‘कारण' ठहरता है;106 और उक्त पाँच में से केवल दो - स्वभाव/संस्कार एवं पुरुषार्थ - ही 'उपादान कारण की कोटि में गर्भित किये जा सकते हैं। जिनागम में अगली कोटि साधन अथवा निमित्त कारण की कही गई है।107 संसारी जीव के सन्दर्भ में निमित्त कारण, चूँकि अन्तरंग और बहिरंग के भेद से दो प्रकार के होते हैं, . इसलिये प्रकृत गाथा में कहा गया 'पूर्वकृत अन्तरंग निमित्त की कोटि में आएगा [जबकि, मोक्षमार्ग के प्रकरण में, वीतराग-सर्वज्ञ-हितोपदेशीस्वरूप आप्त, ऐसे आप्त द्वारा प्रणीत आगम, और ऐसे आगम के अनुरूप आचरने वाले