Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 179
________________ 176 अनेकान्त 61/1-2-3-4 3. एक पावन जैनतीर्थ क्षेत्र के रूप में अयोध्या जैन धर्म के प्रसिद्ध तीर्थस्थानों में अयोध्या भी एक प्रमुख तीर्थ माना जाता है। जैन धर्म के चौबीस तीर्थङ्करों में से पांच तीर्थङ्करों - ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ और अनन्तनाथ का जन्म अयोध्या में ही हुआ था। प्रथम तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभदेव के गर्भकल्याणक और जन्मकल्याणक यहीं हुए तथा शेष चार तीर्थङ्करों के गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक होने के कारण अयोध्या नगरी को तीर्थङ्करों के 18 कल्याणक सम्पन्न कराने का सौभाग्य प्राप्त है। पांचवी सदी में रचित आचार्य यतिवृषभ की 'तिलोयपण्णत्ती' (त्रिलोकप्रज्ञप्ति) के अनुसार जहां गुणों के निधान तीर्थङ्कर आदि महान् पुरुषों का निवास, दीक्षा, केवलज्ञान, आदि मांगलिक कार्यों का अनुष्ठान होता है उस पवित्र स्थान को 'क्षेत्रमंगल' अर्थात् कल्याणकारी तीर्थ की संज्ञा प्राप्त होती है।246 जैन धर्म में पावापुरी, उर्जयन्त, चम्पा आदि के समान अयोध्या भी अतिपुण्यकारी तीर्थ माना गया है।247 छठी शताब्दी ई० पू० में भगवान् महावीर के आविर्भाव के उपरान्त अयोध्या भी जैनधर्म की गतिविधियों का मुख्य केन्द्र बन गया। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के जैन आगमों के अनुसार भगवान् पार्श्वनाथ तथा भगवान् महावीर के अयोध्या में पदार्पण द्वारा जैनधर्म के तीर्थ के रूप में इसे विशेष ख्याति अर्जित हुई।24 जैन आगम 'बृहत्कल्पसूत्र' के अनुसार भगवान् महावीर जब साकेत (अयोध्या) के उद्यान में विहार कर रहे थे तो जैन धर्मानुयायियों को लक्ष्य करके उन्होंने जैन श्रमणों के लिए 'आर्यक्षेत्र' की सीमा का निर्धारण किया था।49 हैन्स बेकर का मत है कि पांचवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म की भांति जैनधर्म के अनुयायी 'उत्तरकुरु' नामक उद्यान में अपनी धार्मिक सभाएं और सत्संग का आयोजन करते थे। सम्भवतः इसी समय से धार्मिक भवनों आदि के निर्माण द्वारा अयोध्या का जैन तीर्थक्षेत्र के रूप में विकास होने लगा था। एक बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार साकेत के एक श्रेष्ठि कालक द्वारा 'कालकाराम' नामक उद्यान को निर्ग्रन्थों अर्थात् जैन धर्मानुयायियों की धार्मिक सभा हेतु देने का उल्लेख मिलता है परन्तु बाद में यह श्रेष्ठि जब बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गया तो बौद्ध भिक्षु इस उद्यान का उपयोग करने लगे। प्रथम मौर्य नरेश चन्द्रगुप्त के बारे में यह प्रसिद्धि है कि उसने जैन धर्म स्वीकार कर लिया था और बाद में मौर्य राजाओं ने भी जैन धर्म को विशेष प्रोत्साहन दिया।2 चौथी शताब्दी ई० पूर्व में अयोध्या जैनधर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था तथा क्षेत्र के व्यापारी समुदाय की इस धर्म के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी।

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