Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

Previous | Next

Page 178
________________ अनेकान्त 61/ 1-2-3-4 अज 61वीं पीढ़ी में हुआ और मान्धाता उससे बहुत पहले 20वीं पीढ़ी में हुआ था। 236 इस प्रकार इन राजाओं की भी दोनों परम्पराओं के साथ संगति बिठाना असम्भव ही है। वैदिक परम्परा के अनुसार अज के पुत्र दशरथ थे और दशरथ की तीन रानियों - कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी से चार पुत्र हुए जिनके नाम थे - राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न ।” जैन पौराणिक परम्परा के अनुसार दशरथ अज के नहीं अनरण्य के पुत्र थे जिनकी चार रानियों अपराजिता, सुमित्रा, केकया और सुप्रभा से क्रमशः पद्म (राम), लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। इस प्रकार जैन तथा वैदिक इक्ष्वाकु वंशावलियां एक दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं। परन्तु इतिहास के अनेक महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर इनमें परस्पर सहमति भी दिखाई देती है। उदाहरणार्थ दोनों परम्पराओं का यह दृढ़ विश्वास है कि इक्ष्वाकुकुल के सूर्यवंशी राजाओं ने अयोध्या की स्थापना करके मानव सभ्यता के इतिहास में चक्रवर्ती राज्य की अवधारणा को एक नई दिशा प्रदान की। दोनों परम्पराओं में चक्रवर्ती सम्राट् सगर तथा राजा भगीरथ के ऐतिहासिक महत्त्व को विशेष रूप से रेखाङ्कित किया गया है । दशरथपुत्र राम के गौरवपूर्ण इतिहास को भी वैदिक तथा जैन दोनों परम्पराओं का पौराणिक साहित्य विशेष महत्त्व देता है। इस सम्बन्ध में प्रो० हैन्स बेकर का यह मत ध्यान देने योग्य है कि जैन परम्परा में इक्ष्वाकुवंश से सम्बन्धित रामकथा को देवशास्त्रीय ( मिथॉलॉजिकल) स्वरूप ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में ही दिया जाने लगा था किन्तु विमलमृरि के प्राकृत 'पउमचरिय' (चतुर्थ शताब्दी ईस्वी) में सर्वप्रथम इम देवशास्त्रीय अवधारणा की उद्भावना हुई। 29 प्रो० बेकर का यह भी मत है कि जैन पुराणों में 'विनीता' का देवशास्त्रीय वर्णन वस्तुतः अयोध्या का ही ऐतिहासिक निरूपण है 12400 स्वयं विमलसूरि का कथन है कि उनके द्वारा वर्णित 'पद्मचरित' का आख्यान आचार्यो की परम्परा से चला आ रहा था, नामावलीबद्ध था " तथा साधुपरम्परा द्वारा लोकप्रसिद्ध हो गया था। 2-42 इसका अर्थ यह है कि नामावली के रूप में निबद्ध पद्मकथा को सर्वप्रथम विमलमृरि ही ने वाल्मीकि रामायण की शैली के अनुरूप विशेष रूप से पल्लवित किया और जैन परम्परा में वैदिक परम्परा के समकक्ष रामकथा को 'चरितकाव्य' के रूप में प्रस्तुत किया। 241 इसी परिप्रेक्ष्य में इक्ष्वाकु वंशावली का भी ऐतिहासिक मूल्याङ्कन किया जाना चाहिए। जैन आगम ग्रन्थों में ऐक्ष्वाक वंशावली का उल्लेख नहीं मिलता। सर्वप्रथम विमलसूरि के प्राकृत 'पउमचरिय' में इसका उल्लेख मिलता है। सम्भवत: इसी 'पउमचरिय' में प्राप्त इक्ष्वाकु वंशावली को आधार बनाकर बाद में रविषेण के 'पद्मपुराण 44 तथा जिनसेन के 'हरिवंशपुराण 245 आदि ग्रन्थों में कतिपय संशोधनों के साथ इक्ष्वाकुवंश के राजाओं के नाम गिनाए गए हैं। 175

Loading...

Page Navigation
1 ... 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201