Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 183
________________ 180 अनेकान्त 61/1-2-3-4 'पद्मपुराण', सर्ग 98 में रामचन्द्र द्वारा सीता को तीर्थङ्करों के जिन जन्मस्थानों को तीर्थतुल्य वन्दनीय बताया गया है उनमें ऋषभादि जिनेन्द्रों का जन्म होने के कारण विनीता (अयोध्या) का विशेष रूप से उल्लेख है - अगदीत प्रथमं सीते गत्वाष्टापदपर्वतम्। ऋषभं भुवनानन्दं प्रणस्यावः कृतार्चनौ॥ अस्यां ततो विनीतायां जन्मभूमिप्रतिष्ठिताः। प्रतिमा ऋषभादीनां नमस्यावः सुसंपदा।। जटासिंह नन्दी (सातवीं सदी ईस्वी) ने अपने 'वराङ्गचरित' महाकाव्य में पांच तीर्थङ्करों की जन्मभूमि के रूप में साकेतपुरी (अयोध्या) को वन्दनीय बताया आद्यौ जिनेन्द्रस्त्वजितो जिनश्च अनन्तजिच्चाप्यभिनन्दनश्च। सुरेन्द्रवन्द्यः सुमतिर्महात्मा साकेतपुर्यां किल पञ्चजाताः।। इनके अतिरिक्त जिनसेन के 'हरिवंशपुराण,276 गुणभद्र के 'उत्तरपुराण' में भी जैन धर्म की पूर्वोक्त परम्परा के सन्दर्भ में 'अयोध्या' को तीर्थस्थान के रूप में पुण्य क्षेत्र माना गया है।" 'पद्मपुराण', 'हरिवंशपुराण' और 'उत्तरपुराण' के अनुसार अयोध्या को जैन धर्म के चक्रवर्ती राजाओं भरत और सगर की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। गुणभद्र के कथनानुसार मघवा, सनत्कुमार और सुभौभ चक्रवर्ती भी अयोध्या में ही हुए थे। कौशलेश दशरथ और रामचन्द्र यहीं राज्य करते थे। काष्ठासंघ नदीतटगच्छ के भट्टारक श्रीभूषण के शिष्य ज्ञानसागर (16वीं-17वीं सदी) ने अपने ग्रन्थ 'सर्वतीर्थवंदना' में कोशल देश अयोध्या तथा वहां स्थित जैन मन्दिरों का भव्य वर्णन किया है। 3.4 अयोध्या के प्रसिद्ध जैन मन्दिर अयोध्या से सम्बन्धित उपर्युक्त पुरातात्त्विक और साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर यह विदित होता है कि सोलहवीं-सत्तरहवीं शताब्दी तक यहां विशाल जैन मन्दिरों का निर्माण हो चुका होगा। श्री एच० आर० नेविल ने 'संयुक्त प्रान्त आगरा एवं अवध' के स्थानीय गजेटियर में संवत् 1781 तक पांच तीर्थङ्करों के नाम से निर्मित होने वाले पांच दिगम्बर जैन मन्दिरों का उल्लेख किया है। सन् 1900 में प्रकाशित नगेन्द्रनाथ वसु द्वारा संकलित 'हिन्दी विश्वकोश तथा सन् 1932 में प्रकाशित लाला सीताराम के 'अयोध्या के इतिहास से भी पांच प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिरों की पुष्टि होती है। सन् 1891 में प्रकाशित फुहरर की पुरातात्त्विक रिपोर्ट से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि संवत् 1781 तक अयोध्या में पांच दिगम्बर जैन मन्दिरों का निर्माण हो चुका था और संवत् 1881

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