Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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अनेकान्त 61/1-2-3-4
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144. राजवार्तिक, 3.10.1.171.6 145. जगदीश चन्द्र जैन, 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज', पृष्ठ 469 146. वही, पृष्ठ 468-469 147. नेमिचन्द्र शास्त्री, 'आदिपुराण में प्रतिपादित भारत', पृष्ठ 55 148. जगदीश चन्द्र जैन, 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज', पृष्ठ 458 149. बृहत्कल्पसूत्र, 1.50 150. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग 2, पृष्ठ 378 151. रमेश चन्द्र गुप्त तथा सुमत प्रसाद जैन, 'आस्था और चिन्तन' - आचार्यरत्न श्री
देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ, आस्था खण्ड, 'कालजयी व्यक्तित्व', पृ० 27 152. आदिपुराण, 12.3-4 153. वही, 12.3-6-101 154. वही, 12.84-101 155. वही, 12.70-72 156. 'संचस्करुश्च तां वप्रप्राकारपरिखादिभिः।' - वही, 12.76 157. 'अयोध्यां न परं नाम्ना गुणेनाप्यरिभिः सुगः।।' - वही, 12.76 1.58. साकेतरूढिरप्यस्याः श्लाघ्यैव स्वैनिकेतनः।
स्वनिकतमिवाह्वातुं साकृतेः केतुबाहुभिः।। - वही, 12.77 159. सुकोशलेति च ख्यातिं सा देशाभिख्या गता।
विनीतजनताकीर्णा विनीतेति च सा मता।। - वही, 12.78 160. वही, 12.79-80 161. 'पद्भिर्मासैरथैतस्मिन् स्वर्गादवतरिष्यति।' - वही, 12.84 162 त्रिप्टिशलाकापुरुषचरित, 1.2.905 163. वही, 1.2.906-8 164. वहीं, 1.2.911-12
165. वही, 1.2.914-16 166. वही, 1.2.917-23 167. 'तस्मिन यद् यक्षमात्मन्वत् तद् वै ब्रह्मविदो विदुः।।' - अथर्ववेद, 10.32 118 त्रिप्टिशलाकापुरुषचरित, 1.2.913 169. आदिपुराण, 12.84 1?0. आदिपुराण, 12.85
171. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग-1, पृष्ठ 355 172. पार्जीटर, 'ऐशियेंट इन्डियन हिस्टॉरिकल ट्रेडिशन', पृष्ठ 145 173. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, 1.2.905-12 174. स एष धर्मसर्गस्य सूत्रधारं महाधिपम्।
इक्ष्वाकुज्येष्ठमृपभं क्वाश्रम ममजीजनत्।। - आदिपुराण, 12.5 175. पुत्रानपि तथा योग्यं वस्तुवाहनसंपदा।
भगवान् संविधत्ते स्म तद्धि राज्योब्जने फलम्।। आकानाच्च तदेक्षणां ग्ससंग्रहणे नृणाम।
इक्ष्वाकुरित्यभूद् देवो जगतमभिसंमतः।। - वही, 16.263-64 176. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, 1.2.654-59 1 77. पउमचरिय, 3.111 178. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग-1, पृष्ठ 355 179. हरिवंशपुराण, 13.33 180. 'अयमादित्यवंशस्तं कथितः क्रमतो नृपः।', - पद्मपुराण, 5.10 181. हरिवंशपुगण, 13.16; पद्मपुराण, 5.10 182. जैनेन्द्र सिद्धान्त कांश, भाग-1, पृष्ठ 355, 358
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