________________
186
अनेकान्त 61/1-2-3-4
vaişnavization of that Jina through the device of the avatāra is a fine example of a vain drive towards the syncretism of two rival faiths." - पद्मनाभ,
एस० जैनी, 'जिन ऋषभ ऐज़ एन अवतार ऑफ, विष्णु', पूर्वोक्त, पृष्ठ 332 115. वही, पृष्ठ 327 116. जगदीश चन्द्र जैन, 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज,' पृष्ठ 493 117. पद्मनाभ, एस० जैनी, 'जिन ऋषभ ऐज़ एन अवतार ऑफ विष्णु', पूर्वोक्त,
पृष्ठ 325-26 118. वही, पृष्ठ 326 119. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य, 'आदिपुराण' (प्रथम भाग), प्रस्तावना, पृष्ठ 15 120. फ़ादर कामिल बुल्के, 'रामकथा', प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रयाग, 1971, पृष्ठ 65 121. सीसेण तस्स रइयं, राहवचरियं तु सृरिविमलेणं।
सोऊणं पुव्वगए नारायण-सीरिचरियाई।। - पउमर्चाग्य, 118.118 122. फादर कामिल बुल्के, 'रामकथा', पृष्ठ 65 123. पउमचरिय, 118.102-3 124. फ़ादर कामिल बुल्कं, 'रामकथा', पृष्ठ 63-64 125. पद्मपुराण, 76.33-34; उत्तरपुराण, 68.628-29 126. "But that the story was first told by Lord Mahāvīra himself is difficult to
believe. For in the Jain canon we do not find the story of Rama recorded anywhere, although the story of Krişna who lived centuries after Rāma - according to the statement of the Jain writers themselves - occurs in
Antagddadasao." . वी० एम० कुलकर्णी, 'पउमचरिय', प्रस्तावना, भाग-1. पृष्ठ 6 127. वही, पृष्ठ 6 128. आदिपुराण, सर्ग 162; पद्मपुराण, 5.74-75; त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, 1.2.902-911 129. तैत्तिरीयब्राह्मण, 1.7.7.41-45%; ऐतरेयारण्यक, 5.1-3 130. विष्णुपुराण, 4.4.5-22; ब्रह्माण्डपुराण, मध्यभाग, सर्ग 48-55; हरिवंशपुराण, सर्ग 13;
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व 2, सर्ग 4-5 131. विष्णुपुराण, 44.29-37 132. पद्मपुराण, 5.74 133. विष्णुपुराण, 4.4.22 134. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, 2.5.157-78 135. असृज्योऽयमसंहार्यः स्वभावनियतास्थितिः।
अधस्तिर्यगुपर्याख्यैस्त्रिभिर्भेदैः समन्वितः।। - आदिपुराण, 4.40 136. वही, 4.47 137. जगदीश चन्द्र जैन, 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज,' पूर्वोक्त, पृष्ठ 456 138. आदिपुराण, 4.48-50 139. नेमिचन्द्र शास्त्री, 'आदिपुराण में प्रतिपादित भारत,' वाराणसी, 1968, पृष्ठ 38 140. जगदीश चन्द्र जैन, 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज.' पृष्ठ 456 141. आदिपुराण, 4.48-49 142. जगदीश चन्द्र जैन, 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज', पृष्ठ 456-57 143. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, 1-10; तिलोयपण्णत्ति, 4.107, 266; राजवार्तिक, 3.10.3, 171.13;
सर्वार्थसिद्धि, 3.10.213.6