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अनेकान्त 61/1-2-3-4
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15. अत्रापि भारतं श्रेष्ठं जम्बूद्वीपे महामुने।
__यतो हि कर्मभूरेषां ह्यतोऽन्या भोगभूभयः।। (वही 23.22) 16. वही. 2.3.24-25 17. वही. 2.1.15-23 18. वही. 2.1.27 19. भागवतपुराण, 5.4.8-9
20. वही. 5.4.10-12 21. इति भागवतधर्मदर्शना नवमहाभागवतास्तेषां सुरितं भगवन्महिमोपबृंहितं वसुदेवनारद
संवादमुपशामायनमुपरिष्टाद्वर्णयिष्यामः। यवीयांस एकाशीतिर्जायन्तेयाः पितुरादेशकरा महाशालीना
महाश्रोत्रिया यज्ञशीला: कर्मविशद्धा ब्राह्मणा बभवः।। ( भागवतपराण, 5.4.12-13) 22. 'यशम्वती सुनन्दाख्ये स एव पर्यणीनयत्'। (आदिपुराण 15.70) 23. मुनि सुशील कुमार. 'जैन धर्म का इतिहास', पृ. 13 24. भागवतपुराण, 5.4.8 25. आदिपुराण, 16.4-8 26. वही, अध्याय 35-36 27. मुनि सुशील कुमार, 'जैन धर्म का इतिहास', पृ. 24 28. विष्णुपुराण, 2.13.7-9
29. वही, 2.13.12-36 30. वही. 2.13.37-40
31. वही, 2.13.40-43 32. 'आत्मानं दर्शयामास जडोन्मत्ताकृतिं जने।' (वही, 2.13.44) 33. वही, 2.13.52-53 34. आदिपुराण, 18.54-59 35. मरीचिश्च गुणेर्नप्ता परिव्राड् भूयमास्थितः।
मिथ्यात्ववृद्धिमकरोदपसिद्धान्तभाषितैः। तदुपज्ञमभृड् योगशास्त्रं तन्त्रं च कापिलम।
येनायं मोहितो लोकः सम्यग्ज्ञानपगढ़मुखः।। (आदिपुराण, 18.61 62) २०. भागवतपुराण, 5.4.11-13 37. आदिपुराण, 18.61-62 38. विणपुराण, 2.13.53-54 39. वही, 2.1.5-14 40. वी, 1.13.1-9
41. पद्मपुराण, 5.4-9; हरिवंशपुराण, 13.7-11 12. भागवतपुराण, 5.3.20 43. 'The study enables us to observe the extraordinary manner in which a
Vaisnava apologist while denouncing the Jain faith, appropriates the central figure of that religion by the device of the doctrine of avatāra.' - पद्मनाभ एस० जना, 'जिन ऋपभ एज एन अवतार ऑफ विष्ण' (लख), 'णाणसायर',
तीर्थङ्कर ऋषभ अंक, दिल्ली, 1994, पृष्ठ 314 44. 'It appears highly probable thereof that it was the author of the
Bhāgvatapurāņa who with great ingenuity brought the three terms (vătarašanā munayah, śramana and paramahamsa) together and applied them with considerable advantage to the life of Rsabha who was widely worshipped
among the Sramanas of his time.' - वही, पृष्ठ 324 45. वही, पृष्ठ 323 16. "The word rşabha is no doubt of ccnmmon occurrence in the Vedic hymus,
but contrary to the belief of inany modern Jain apologists, there is no conclusive evidence to show that it was ever used as substantive or as a name of a person.' - वही, पृष्ठ 324