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अनेकान्त 61/1-2-3-4
2.3 जैन परम्परा में इक्ष्वाकुवंश वैदिक परम्परा के समान ही जैन परम्परा के पौराणिक साक्ष्य इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि अयोध्या की स्थापना के बाद ही इक्ष्वाकुवंश का विधिवद् इतिहास प्रारम्भ हुआ। वैदिक परम्परा के अनुसार वैवस्वत मनु ने सर्वप्रथम अयोध्या नगरी का निर्माण किया और उसके उपरान्त उनके वंशकर पुत्र 'इक्ष्वाकु' से सूर्यवंशी ऐक्ष्वाक वंशानुक्रम प्रारम्भ हुआ।12 उधर जैन परम्परा के अनुसार सौधर्म कल्प के इन्द्र ने स्वर्ग से आकर आदि तीर्थकर ऋषभदेव को राज्याभिषिक्त करने के लिए अयोध्या नगरी का निर्माण किया।73 भगवान् ऋषभदेव चौदहवें कुलकर नाभिराज के पुत्र थे। इन्हीं से इक्ष्वाकुवंश का प्रारम्भ हुआ।174 परन्तु जैनधर्म की दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्पराएं इक्ष्वाकुवंश के नामकरण की घटना को भिन्न भिन्न रूप में प्रस्तुत करती हैं। दिगम्बर आम्नाय के आचार्य जिनसेन के अनुसार भगवान् ऋषभदेव ने अपने पुत्रों की धन-सम्पत्ति का विभाग करने के उपरान्त मनुष्यों को इक्षुरस (गन्ने का रस) संग्रह करने का उपदेश दिया था। इसी कारण भगवान् ऋषभ देव 'इक्ष्वाकु' के रूप में प्रसिद्ध हो गए। उधर श्वेताम्बर आम्नाय के प्रसिद्ध आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार आदि तीर्थङ्कर जब बाल्यावस्था में ही थे तथा अपने पिता नाभिराज की गोद में बैठे थे तो सौधर्म कल्प के इन्द्र को भगवान् ऋषभदेव के दर्शन करने की इच्छा हुई। वे खाली हाथ न जाकर अपने साथ प्रभु को भेंट करने के लिए गन्ना भी साथ लेकर आए। भगवान् ऋषभदेव ने अवधिज्ञान द्वारा इन्द्र के मनोभाव को जानते हुए 'इक्षु' को ग्रहण कर लिया। तब से इन्द्र ने भगवान् ऋषभदेव के वंश का नाम 'इक्ष्वाकु' रख दिया। 76
प्राकृत 'पउमचरिय' के रचयिता विमलसूरि के अनुसार कल्पवृक्षों के नष्ट हो जाने पर जब कुबेर ने अयोध्या नगरी की रचना की थी तो उस समय लोगों का आहार ईख (इक्षु) का रस ही मुख्य आहार था -
कालसभावेण तओ, नट्ठसु य विविहकप्परुक्खेसु ।
तइया इक्खुरसोच्चिय, आहारो आसि मणुयाणं ॥7 इस प्रकार जैन पौराणिक इतिहास के अनुसार सर्वप्रथम भगवान् ऋषभदेव से ही 'इक्ष्वाकु वंश का प्रारम्भ हुआ। बाद में इसकी दो शाखाएं हो गईं - एक सूर्यवंश और दूसरी चन्द्रवंश। सूर्यवंश की शाखा भरत चक्रवर्ती के पुत्र अर्ककीर्ति से प्रारम्भ हुई क्योंकि अर्क नाम सूर्य का है। सूर्यवंश ही सर्वत्र "इक्ष्वाकु वंश के रूप में प्रसिद्ध हुआ। चन्द्रवंश की शाखा बाहुबली के पुत्र सोमयश से प्रारम्भ होती है। इसी का नाम सोमवंश भी है। क्योंकि 'सोम' और