Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 174
________________ अनेकान्त 61/1-2-3-4 171 'चन्द्र' पर्यायवाची हैं।182 'पद्मपुराण' के अनुसार प्राचीन काल के चार महावंशों - इक्ष्वाकुवंश, चन्द्रवंश, विद्याधरवंश तथा हरिवंश में इक्ष्वाकुवंश ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है।83 - जगत्यास्मिन् महावंशाश्चत्वारः प्रथिता नृप। एषां रहस्यसंयुक्ताः प्रभेदा बहुधोदिताः॥ इक्ष्वाकुः प्रथमस्तेषामुन्नतो लोकभूषणः। ऋषिवंशो द्वितीयस्तु शशाङ्ककरनिर्मलः। विद्याभृतां तृतीयस्तु वंशोऽत्यन्तमनोहरः। हरिवंशो जगत्ख्यातश्चतुर्थः परिकीर्तितः॥4 2.4 तीर्थङ्कर ऋषभदेव के बाद इक्ष्वाकु वंशावली वैदिक परम्परा के पुराणों की भांति जैन पुराणों में भी अयोध्या के इक्ष्वाकु राजाओं की वंशावली का उल्लेख मिलता है। जैन पुराणकारों ने अयोध्या में जन्म लेने वाले तीर्थङ्करों के युग को आधार बनाकर इक्ष्वाकु राजाओं का वंशानुक्रम देने का प्रयास किया है। विमलसूरि रचित 'पउमचरिय' (तीसरी-चौथी शती ई०),15 रविषेणाचार्य रचित 'पद्मपुराण' (676 ई०),1 तथा जिनसेनाचार्य रचित 'हरिवंशपुराण'187 में प्रथम तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभदेव के युग की इक्ष्वाकु वंशावली का निम्न प्रकार से उल्लेख मिलता है - _1. भगवान् ऋषभदेव, 2. चक्रवर्ती भरत, 3. आदित्ययशा 4. सिंहयशा/ सितयशा/स्मितयशा, 5. बलभद्र/बलांक/बल, 6. वसुबल/सुबल, 7. पहाबल, 8. अतिबल, 9. अमृत/अमृतबल, 10. सुभद्र, 11. सागरभद्र/सागर, 12. भद्र, 13. रवितेज, 14. शशिप्रभ/शशी, 15. प्रभूततेज, 16. तेजस्वी, 17. तपन, 18. प्रतापवान् 19. अतिवीर्य, 20. महावीर्य/सुवीर्य, 21. उदितवीर्य/उदित/पराक्रम, 22. महेन्द्रविक्रम, 23. सूर्य, 24. इन्द्रद्युम्न, 25. महेन्द्रजित्, 26. प्रभु, 27. विभु, 28. अरिदमन/अविध्वंश, 29. वीतभी, 30. वृषभकेतु/वृषभध्वज, 31. गरुडांक और 32. मृगांक। उपर्युक्त इक्ष्वाकु वंशावली 'पउमचरिय', 'पद्मपुराण' तथा 'हरिवंशपुराण' के आधार पर निश्चित होती है। इनमें कहीं-कहीं राजाओं के नामों और वंशानुक्रम में मतभेद भी दिखाई देता है। _ 'पउमचरिय' में अमृत/अमृतबल, वीतभी का नामोल्लेख नहीं मिलता और 'सागरभद्र' को दो राजाओं का नाम न मानकर केवल एक ही नाम माना गया है। इसलिए विमलसूरि के अनुसार भगवान् ऋषभदेव से लेकर मृगांक तक 29

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