Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

Previous | Next

Page 159
________________ 156 अनेकान्त 61/1-2-3-4 1.4 वैदिक संहिताओं में 'ऋषभ' ऋग्वेद में तीन सूक्त ऐसे भी हैं जिनके मंत्रद्रष्टा ऋषि 'ऋषभ वैश्वामित्र' हैं। इन तीन सूक्तों में से ऋग्वेद के तृतीय मण्डल का 13वां और 14वां सूक्त अग्नि देवता का है तो नौवें मण्डल का 71वां सूक्त पवमान सोम को सम्बोधित किया गया है। प्रो० पद्मनाभ जैनी 'ऋषभ वैश्वामित्र' के इन सूक्तों को श्रमण परम्परा से जोड़ने के पक्ष में नहीं हैं। 'ऋषभ वैश्वामित्र' गायत्री मंत्र के द्रष्टा ऋषि रहे हैं। सप्तर्षिमण्डल के गणमान्य ऋषि विश्वामित्र के पुत्र होने के कारण इनके नाम के आगे 'वैश्वामित्र' पद संयुक्त हुआ है। आचार्य सायण ने इस तथ्य की पुष्टि करते हुए लिखा है - 'तथा चानुक्रान्तम् प्र वः ऋषभस्त्वानुष्टुभम्' इति। विश्वामित्रपुत्र ऋषभ ऋषिः। 7 ऐतरेयब्राह्मण में ऋषभ के विश्वामित्र पुत्र होने का उल्लेख मिलता है - 'ततो विश्वामित्र इतरान पुत्रानाहूय गाध-यैवमाज्ञापितवान् - यो मधुच्छन्दानाम यश्चर्षभः योऽपि रेणुः। वहां विश्वामित्र के सौ पुत्रों का उल्लेख मिलता है।" ऋग्वेद में ही विश्वामित्र के मधुच्छन्दा (1.1), कत (3.17.18), प्रजापति (3.18, 3.54.56), अष्टक (10.104), रेणु (9.70) आदि पुत्रों के सूक्तों का उल्लेख आया है। अग्नि को सम्बोधित तृतीय मण्डल के सूक्तों में 'ऋषभ वैश्वामित्र' ने मानवीय यज्ञ में हव्यादि ग्रहण करने के लिए अग्नि देवता का आह्वान किया है। चमकीले रथ, सहस पुत्र और देदीप्यमान केश आदि विशेषणों द्वारा अग्नि की स्तुति की गई है। नौवें मण्डल में पवमान सोम को समर्पित सूक्त में भी मंत्रद्रष्टा ऋषभ यज्ञपात्र में हाथों द्वारा पत्थर से कूटे हुए सोमरस को स्थापित करने का वर्णन करते हैं और यह भी कहते हैं कि इस सोमरस से तृप्त होकर इन्द्र शत्रुओं के नगरों को ध्वस्त करते हैं। संक्षेप में 'ऋषभ वैश्वामित्र' के सूक्तों की देवस्तुति अन्य वैदिक देवों की स्तुतियों के समान ही है। श्रमण परम्परा का कोई लक्षण इन मन्त्रों में नहीं दिखाई देता है। यज्ञप्रधान वैदिक संस्कृति में वृषभ (पशु) का इतना महत्त्वपूर्ण स्थान था कि उसे 'वृषभं यज्ञियानाम्' के रूप में महामण्डित किया जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता में जो वृषभाङ्कित मुद्राएं मिली हैं वे वैदिक धर्म में वृषभ पशु के राष्ट्रीय महत्त्व का पुरातात्त्विक प्रमाण हैं। वैदिक संहिताओं में ऐसे अनेक प्रमाण हैं जिनसे सिद्ध होता है कि सिन्धु प्रदेश वैदिक काल में एक अतिपुण्यशाली यज्ञक्षेत्र था। कक्षीवान् दैर्घतमस ऋषि ने जब सिन्धु नदी के किनारे राजा भावयव्य के लिए यज्ञों का अनुष्ठान किया तो उसे सौ स्वर्ण मुद्राएं, सौ घोड़े और सौ वृषभ (बैल) भी दान स्वरूप मिले थे। उधर अथर्ववेद में सिन्धु प्रदेश की विजय यात्राओं को करते हुए अयोध्या के ऐक्ष्वाक राजा 'सिन्धुद्वीप' द्वारा जल

Loading...

Page Navigation
1 ... 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201