Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 166
________________ अनेकान्त 61/1-2-3-4 163 माता मरुदेवी के गर्भ में आए तो उसके छह मास पहले से ही अयोध्या नगरी में हिरण्य-सुवर्ण की वर्षा होने लगी थी। इसलिए भगवान् ऋषभदेव का 'हिरण्यगर्भ' नाम सार्थक हुआ। आदि तीर्थङ्कर ने कल्पवृक्षों के नष्ट हो जाने के बाद असि, मसि, कृषि आदि छह कर्मों का उपदेश देकर प्रजाजनों की रक्षा की थी इसलिए उन्हें 'प्रजापति' कहा जाने लगा । भगवान् ऋषभदेव ने भोगभूमि नष्ट हो जाने के बाद समाज व्यवस्था की सबसे पहले प्रवर्तना की थी इसलिए उन्हें 'स्रष्टा' कहा जाने लगा। भगवान् ऋषभदेव ने दर्शनविशुद्धि आदि भावनाओं द्वारा आत्मगुणों का स्वयं विकास किया था इसलिए वे 'स्वयंभू' कहलाए ।' स्पष्ट है जिनसेनाचार्य ने जहां एक ओर भारत के प्राचीन इतिहास से सम्बद्ध दार्शनिक शब्दावली का प्रयोग करते हुए जैन तत्त्वमीमांसा का प्रचार व प्रसार किया, वहीं दूसरी ओर वैदिक साहित्य के परिप्रेक्ष्य में उन पारिभाषिक शब्दों के फलितार्थ को समझाते हुए वैदिक एवं श्रमण परम्परा की साझा संस्कृति के इतिहास के साथ भी संवाद करने की चेष्टा की है। आधुनिक विद्वानों को इसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में वैदिक एवं श्रमण परम्परा के संयुक्त इतिहास का निष्पक्ष मूल्यांकन करना चाहिए । वैदिक पुराणलेखकों ने जैनधर्म के महान् पुरुषों का जिस प्रकार ‘भागवतीकरण' किया उसी प्रकार वैदिक परम्परा के लोकप्रिय चरित्र भगवान् राम और कृष्ण के 'जैनीकरण' की प्रवृत्ति भी जैन साहित्य में दृष्टिगत होती है। जैनधर्म के अनुसार 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषों' में से नौ बलदेव, नौ वासुदेव, और नौ प्रतिवासुदेव सदैव समकालिक होते हैं। जैनधर्म के इसी देवशास्त्रीय ढांचे में विमलसरि ने तीसरी-चौथी शताब्दी ई० में सर्वप्रथम वाल्मीकि रामायण की लोकप्रिय रामकथा को ढालने का प्रयत्न किया।|20 ग्रन्थकार का कहना है कि नारायण तथा बलदेव की कथा जो पूर्वगत में वर्णित थी तथा जिसे उन्होंने अपने गुरुमुख से सुना था उसी के आधार पर यह (राम) का चरित्र लिखा गया है। ___फ़ादर कामिल बुल्के के अनुसार जैन रामकथा के दो भिन्न रूप प्रचलित हैं। श्वेताम्बर समुदाय में केवल विमलसूरि की रामकथा का प्रचार है लेकिन दिगम्बर परम्परा में विमलसूरि तथा गुणभद्र दोनों की रामकथाओं का प्रचार है।।22 विमलसूरि के 'पउमचरिय' में स्पष्ट उल्लेख आया है कि भगवान् महावीर के काल में इस कथा को जैनानुमोदित रूप दिया गया। जैन दृष्टि से राम, लक्ष्मण और रावण क्रमशः आठवें बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेव माने जाते हैं। बलदेव (बलभद्र) और वासुदेव (नारायण) किसी राजा की भिन्न-भिन्न रानियों के पुत्र होते हैं। इसी देवशास्त्रीय मान्यता के अनुरूप वासुदेव लक्ष्मण अपने बड़े भाई बलभद्र पद्म या राम के साथ प्रतिवासुदेव रावण से युद्ध करते हैं और अन्त में प्रतिवासुदेव का वध करते हैं।।24 इसी देवशास्त्रीय मान्यता के अनुसार जैन

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