Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 164
________________ अनेकान्त 61 1-2-3-1 भी प्रासंगिक है क्योंकि इनका वैचारिक चिन्तन तपश्चर्या से अनुप्राणित है। वैदिक श्रमणधारा का अस्तित्व वैसे तो वैदिक संहिताओं के काल में ही आ चुका था, किन्तु आरण्यकों तथा उपनिषदों के आविर्भाव के बाद वैदिक श्रमणधारा का विशेष पल्लवन हुआ तथा भागवत धर्म अथवा परमहंस धर्म इसी वैदिक श्रमणधारा का उत्तरवर्ती विकास है जिसकी एक झलक 'भागवतपुराण' आदि ग्रन्थों में भी देखने को मिलती है। विद्वानों के अनुसार 'श्रमण' शब्द जैन एवं बौद्ध विचारधाराओं के लिए प्रयुक्त होने वाला एक विशेष पारिभाषिक शब्द है। डॉ० दामोदर शास्त्री के अनुसार संयम तथा योग साधना को प्रमुखता देने वाली अवैदिक विचार धारा के रूप में ' श्रमण' विचारधारा को मान्यता प्राप्त है। 161 यह श्रमण विचारधारा त्यागवादी, संयमप्रधान, अध्यात्मवादी, निर्वृत्तिमार्गी या निर्वृत्तिप्रधान विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्कृति है ।" " वैदिक परम्परा में भी 'श्रम' शब्द तपस्या का पर्यायवाची है ।" औपनिषदिक विचारधारा भी उसी अध्यात्मवादी, त्यागमूलक और निर्वृत्तिमार्गी विचारधारा का पोषण करती है परन्तु वह वेदमूलक होने के कारण 'श्रमण' विचारधारा के रूप में विख्यात नहीं हो सकी। यज्ञीय पशुहिंसा और शुष्क कर्मकाण्डों के विरुद्ध जब वेदेतर जैन एवं बौद्ध धर्मो की लोकप्रियता बढ़ी तो उसके बाद भागवत धर्म अथवा वैष्णव धर्म के रूप में वैदिक श्रमण परम्परा का प्रादुर्भाव हुआ। जैन तथा बौद्ध धर्मो के ह्रास के उपरान्त गम और कृष्ण को आराध्य देव मानने वाली वैष्णव धर्म की लहर ने वैदिक धर्म के क्षेत्र में एक बार पुनः एक नई धार्मिक चेतना को उत्पन्न किया। वाल्मीकि रामायण, महाभारत, तथा विपुल मात्रा में रचे गए पौराणिक साहित्य ने राम और कृष्ण को विष्णु के अवतार के रूप में लोकाराध्य बना दिया । वैदिक कालीन देवताओं का स्थान अब गौण हो गया था तथा हिंसा - प्रधान यज्ञों के स्थान पर पुष्प - पत्रों से परितुष्ट वैष्णव पूजा-पद्धति प्रचलित हो चुकी थी। वैदिक परम्परा कं चिन्तकों ने धार्मिक सहिष्णुतावाद की भावना से अनुप्राणित होकर बौद्धधर्म के प्रवर्तक भगवान् बुद्ध तथा जैनधर्म के आदि तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभदेव को भी एक पुराकालिक ऐतिहासिक पहचान से जोड़ते हुए विष्णु भगवान् का अवतार मान लिया। इन दोनों श्रमण परम्पराओं के आराध्य पुरुषों को विष्णु का अवतार मानने का एक ऐतिहासिक औचित्य यह भी था कि ये अयोध्या की ऐक्ष्वाक वंश परम्परा से सम्बन्ध रखने वाले धर्मप्रभावक महान् जननायक भी थे। वैदिक परम्परा के अनुसार ऐक्ष्वाक वंशपरम्परा के मूल पुरुष ब्रह्मा माने जाते थे जबकि जैन परम्परा के अनुसार आदि तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभदेव इक्ष्वाकु वंश कं आदि पुरुष हुए। सम्भवत: इसी साम्यता को लक्ष्य करके प्रो० पद्मनाभ जैनी

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