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अनेकान्त 61/1-2-3-4
दक्षिणवर्ती तीन खण्डों में मध्य खण्ड 'आर्यखण्ड' के नाम से प्रसिद्ध है तथा शेष पांच खण्ड 'म्लेच्छखण्ड' कहलाते हैं। 'आर्यखण्ड' के मध्य में स्थित बारह योजन लम्बा और नौ योजन चौड़ा क्षेत्र 'अयोध्या' के नाम से प्रसिद्ध है। जैन साहित्य में अयोध्या के पर्यायवाची विनीता, साकेत, कोशला, इक्ष्वाकुभूमि, रामपुरी, विशाखा आदि नामों का भी उल्लेख मिलता है।145
जैन परम्परा के अनुसार अयोध्या को आदि तीर्थ और आदि नगर माना गया है क्योंकि भगवान् आदिनाथ (ऋषभदेव), जो जैन धर्म के आदि तीर्थंकर भी थे, ने यहां की प्रजा को सभ्य तथा सुसंस्कृत बनाया था। 'कोशल' जैन सूत्रों का एक प्राचीन जनपद माना गया है। वैशाली में जन्म लेने के कारण जैसे महावीर को 'वैशालिक' कहा जाता था उसी प्रकार ऋषभदेव 'कौशलिक' (कोसलिय) कहे जाते थे। कोशल का ही प्राचीन नाम विनीता था। कहते हैं कि विविध प्रकार की कलाओं में कुशलता प्राप्त करने के कारण विनीता को 'कुशला' या 'कोशला' कहने लगे। अवध देश को कोशल जनपद माना गया है। 'आदिपुराण' में इसके दो विभाग पाए जाते हैं - उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल। अयोध्या, श्रावस्ती, लखनऊ आदि नगर उत्तर कोशल जनपद में सम्मिलित थे तथा दक्षिण कोशल को विदर्भ या महाकोशल कहा गया है।147 जैन परम्परा की दृष्टि से कोशल जनपद धार्मिक दृष्टि से बहुत पवित्र माना जाता है। शताधिक जैनधर्म की प्राचीन कथाएं कोशल देश और साकेत नगरी से सम्बद्ध हैं। तीर्थङ्करों की पावन जन्मभूमि होने के कारण भी अयोध्या की विशेष महिमा जैन साहित्य में वर्णित है। 'बृहत्कल्पसूत्र' नामक जैन आगम के अनुसार भगवान् महावीर जब साकेत (अयोध्या) के उद्यान में विहार कर रहे थे तो जैन श्रमणों को लक्ष्य करके उन्होंने विहार सम्बन्धी यह नियम निर्धारित किया कि "निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थनी साकेत के पूर्व में अंग-मगध तक, दक्षिण में कौशाम्बी तक, पश्चिम में स्थूणा (स्थानेश्वर) तक और उत्तर में कुणाला (श्रावस्ती जनपद) तक विहार कर सकते हैं। इतने ही क्षेत्र आर्यक्षेत्र हैं, इसके आगे नहीं क्योंकि इतने ही क्षेत्रों में साधुओं के ज्ञान, दर्शन और चारित्र अक्षुण्ण रह सकते हैं।''
जैन धर्म के चौबीस तीर्थङ्करों में से पांच तीर्थङ्करों - भगवान् ऋषभदेव, श्री अजितनाथ, श्री अभिनन्दननाथ, श्री सुमतिनाथ और श्री अनन्तनाथ की जन्मभूमि अयोध्या है। चक्रवर्ती भरत और सगर ने भी अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया था। आचार्य गुणभद्र के अनुसार मघवा, सनत्कुमार और सुभौम चक्रवर्ती का जन्म भी अयोध्या में ही हुआ था। राजा दशरथ और नारायण श्री रामचन्द्र भी अयोध्या में राज्य करते थे।