Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 167
________________ 164 अनेकान्त 61/1-2-3-4 रामकथाओं में राम के द्वारा रावण का वध नहीं कराया जाता बल्कि नारायण लक्ष्मण प्रतिनारायण रावण का वध करते हैं।125 जैन परम्परा में रामकथा के उद्भव तथा विकास का ऐतिहासिक दृष्टि से मूल्याङ्कन करते हुए प्रो० वी० एम० कुलकर्णी ने प्राकृत 'पउमचरिय' की प्रस्तावना में कहा है कि रामकथा का उद्भव भगवान् महावीर से मानना विश्वसनीय प्रतीत नहीं होता क्योंकि जैन आगमों में रामकथा का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता जबकि शताब्दियों के बाद हुई कृष्णकथा का वहां उल्लेख मिलता है। रामकथा भगवान् महावीर द्वारा सर्वप्रथम कही गई होती तो आचार्य हेमचन्द्र आदि जैन लेखक विमलसूरि की परम्परा से हटकर रामकथा के सृजन का साहस न कर पाते। प्रो० कुलकर्णी का यह भी मत है कि भगवान् महावीर के समय में रामकथा इतनी लोकप्रिय नहीं हुई होगी जिससे कि उसे धार्मिक दृष्टि से महत्त्व दिया जा सके। दूसरे, विमलसृरि ने रामकथा को भगवान् महावीर से जोड़ने का प्रयास इसलिए भी किया होगा ताकि वे अपने ग्रन्थ को पवित्रता के पद पर आसीन करके जैन धर्मानुयायियों के लिए एक ऐसा धर्मग्रन्थ दे सकें जो वैदिक परम्परा में वाल्मीकि रामायण के समकक्ष हो।27 इन सभी तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि वाल्मीकि रामायण की रचना के बाद ही जैनधर्म में रामकथा का धार्मिक दृष्टि से जैनीकरण हुआ होगा। ___ अयोध्या में भगवान् ऋषभदेव की राज्याभिषेक विधि का जैसा वर्णन जैन पुराणों में आया है, वह ब्राह्मण तथा आरण्यक ग्रन्थों में वर्णित राजसूय अभिषेक विधि से प्रभावित जान पड़ता है। ऐक्ष्वाक वंश से सम्बन्धित चक्रवर्ती सगर के विजयाभियानों का स्वर भी वैदिक पुराणों और जैन पुराणों में लगभग एक समान है, परन्तु व्यक्तिगत चरित्र में थोड़ा-बहुत अन्तर भी है। वैदिक पुराणों के अनुसार राजा सगर बाहु का पुत्र था। किन्तु जैन पुराणों में उसे विजय सागर का पुत्र कहा गया है। वैदिक पुराणों के अनुसार सगर के साठ हजार पुत्रों को कपिल मुनि ने भस्म कर दिया था, परन्तु जैन पुराणों के अनुसार सगर के साठ हजार पुत्रों को नागराज ज्वलनप्रभ ने भस्म किया था। इस प्रकार वैदिक तथा श्रमण परम्पराएं पौराणिक चरित्र की दृष्टि से परस्पर भिन्न होते हुए भी अयोध्या के पूर्व इतिहास की प्रसिद्ध घटनाओं के मोड़ पर मिलती अवश्य हैं। 2. जैन पुराणों में अयोध्या जैन दर्शन की मान्यता के अनुसार इस लोक का रचयिता कोई ईश्वर जैसी शक्ति नहीं अपितु यह लोक अधोलोक, मध्यलोक तथा ऊर्ध्वलोक इन तीन भेदों से

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