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अनेकान्त 61/ 1-2-3-4
होता।” इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण सूक्त के किसी भी मन्त्र में 'ऋषभ' शब्द का नामोल्लेख भी नहीं मिलता। डॉ० हीरालाल जैन का मत है कि इस सूक्त की दूसरी ऋचा में 'मुनयो वातरशना: ' के रूप में 'दिग्वासस्' दिगम्बर मुनियों का वर्णन है जो पीतवर्ण और मलधारी हैं, वायु के समान स्वच्छन्द विहार करते हैं तथा देवरूप हो गए हैं
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मुनयो वातरशनाः पिशङ्गा वसते मला । वातस्यानु धाजिं यन्ति यद्देवासो अविक्षत॥"
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ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि इस सूक्त के मंत्रद्रष्टा सात ऋषियों को ही 'वातरशना' संज्ञा दी गई हैं जिनके नाम हैं 1. जूति, 2. वातजूति, 3. विप्रजूति, 4. वृषाणक, 5. करिक्रत, 6. एतश और 7. ऋष्यशृङ्ग ।" सायण ने भी इन्हीं ऋषियों की 'वातरशना' संज्ञा स्वीकार की है और स्पष्ट किया है कि ये ऋषिगण अलौकिक ज्ञान के ज्ञाता हैं और इन्होंने केसरिया रंग के मलिन वल्कल वस्त्रों को धारण कर रखा है।" 'केशीसूक्त' की अन्तिम ऋचा में डॉ० हीरालाल जैन के मतानुसार केशी और रुद्र का एक साथ जल पीने का वर्णन आया है" वायुरस्मा उपामन्थूत्पिनष्टि स्मा कुनंनमा | केशी विषस्य पात्रेण यदुद्रेणापिबत्सह ॥ "
ऋचा का अर्थ : 'जिस समय केशी (सूर्य) रुद्र के साथ विष (जल) का पान करते हैं, उस समय वायु उन्हें प्रकम्पित कर देते हैं। ' सायणाचार्य के अनुसार इस ऋचा में सूर्य के द्वारा रुद्रपुत्र मरुद्गणों ( वायु के झोंकों) की सहायता से जल वाष्पीकरण की प्रक्रिया का वर्णन आया है।" इस प्रकार वैदिक भाष्यकारों की दृष्टि से भी 'केशीसूक्त' में जैन परम्परा से सम्बन्धित किसी भी अवधारणा या गतिविधि का उल्लेख नहीं मिलता। वैदिक देवता सूर्य, अग्नि तथा वायु के रूप में 'कंशी' की स्तुति विशुद्ध वैदिक परम्परा के अनुकूल है।
ऋग्वेद में दसवें मण्डल के 166वें सृक्त के मन्त्रद्रष्टा ऋषि ऋषभ वैराज' अथवा 'ऋषभ शाक्वर' के रूप में प्रसिद्ध हैं। ऋषभ के साथ पुत्रार्थक 'वैराज' अथवा 'शाक्वर' पदों के संयुक्त होने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि ये मन्त्रद्रष्टा ऋषि या तो 'विराज' के पुत्र थे अथवा 'शक्वर' के। भाष्यकार मायण ने भी इन्हीं नामों से ऋषभ के ऋषित्व को प्रमाणित किया है
'वैराजस्य
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शाक्वरस्य वर्षभाख्यस्यार्पम् । ऋषभ कं इस परिचयात्मक विवरण के आधार पर जैनधर्म के आदि तीर्थङ्कर के माथ वैदिक 'ऋषभ वैराज' को जोड़ना युक्तिसंगत नहीं। वैसे भी इस सृक्त के देवता 'सपत्नहन्ता' इन्द्र हैं तथा महर्षि ऋषभ शत्रुहन्ता इन्द्रदेव से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे उनके विरोधियों का पराभव कर