Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 139
________________ 136 अनेकान्त 61/1-2-3-4 परिणामविशेषाच्च शक्तिमच्छक्तिभावत ।।71 ।। सज्ञासख्याविशेषाच्च स्वलक्षणविशेषत । प्रयोजनादिभेदाच्च तन्नानात्व न सर्वथा।।72 ।। अर्थ द्रव्य और पर्यायो मे ऐक्य या अभेद है, क्योकि दोनो मे अव्यतिरेक पाया जाता है (अर्थात् द्रव्य से पर्याय को पृथक् नही किया जा सकता, और पर्याय से द्रव्य को पृथक नही किया जा सकता), उनके बीच जो भेद दिखाई देता है वह परिणामविशेष का भेद, शक्तिमान व शक्ति का भेद, तथा सज्ञाविशेष, सख्याविशेष, स्वलक्षणविशेष और प्रयोजनविशेष आदि की अपेक्षा ही दिखाई देता है, तात्पर्य यह है कि द्रव्य और पर्यायो मे यह भिन्नत्व 'सर्वथा नही है। 27. ध्यान देने योग्य है कि क्रमण अथवा उल्लघन, मूलत गति का ही एक प्रकार है। 28. आचार्य अमृतचन्द्रकृत 'तत्त्वार्थसार' की प्रस्तावना मे डॉ० पन्नालाल साहित्याचार्य लिखते है "(अमृतचन्द्रसूरि) रास्कृत भाषा के महान विद्वान तथा अध्यात्मतत्त्व के अनुपम ज्ञाता थे। कुन्दकुन्दस्वामी के समयसारादि ग्रन्थो पर पाण्डित्यपूर्ण टीकाए लिखकर इन्होने कुन्दकुन्दस्वामी के हार्द को प्रकट किया है। ... वे जहाँ कुन्दकुन्दस्वामी के निश्चयनय-प्रधान ग्रन्थो की व्याख्या करते है वहाँ उन व्याख्याओ के प्रारम्भ मे ही अनेकान्त का स्मरण कर पाठको को सचेत कर देते हे कि अनेकान्त ही जिनागम का प्राण है।" (तत्त्वार्थसार, श्री गणेशप्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला, वाराणसी, 1970, प्रस्तावना, पृ० 24) अमृतचन्द्राचार्य की स्तुत्यात्मक कृति लघुतत्त्वस्फोट' के सम्पादकीय मे साहित्याचार्य जी लिखते है (लघुतत्त्वस्फोट) ग्रन्थ की भाषा प्रौढ सस्कृत है। अमृतचन्द्राचार्य सस्कृतभाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे यह हम समयसारादि ग्रन्थो की टीकाओ के माध्यम से जानते है। समयसारादि जैसे अध्यात्म ग्रन्थो की टीका में भी जब उन्होने भाषा की प्रोढता को नहीं छोडा, तब इरा स्वतन्त्र ग्रन्थ मे कैसे छोड सकते थे?" (लघुतत्त्वस्फोट, श्री गणेश वर्णी दि० जैन सस्थान, वाराणसी, 1981, सम्पादकीय, पृ० 7) 29. राजवार्तिक, अध्याय 5 सूत्र 22, वार्तिक 10. 30. आचार्य वीरसेन के शब्दो मे 'ज्ञेय का अनुसरण करने वाला होने से अथवा न्यायरूप (युक्त्यात्मक) होने से (जिन) सिद्धान्त न्याय्य (correct. right. proper) कहलाता है। (धवला टीका, 5, 5. 50, पु० 13, पृ० 286) 31. उदाहरणार्थ, श्री बाबूलालजी जैन (कलकत्तावाले, सम्प्रति विवेक-विहार, दिल्लीवासी) की शास्त्रसभा मे यह आमर्श कई बार सुनने को मिला है। 32. 'क्रमबद्धपर्याय और नियतिवाद' शीर्षक से यह ट्रैक्ट, स्वतन्त्र रूप से प्रकाशित होने के अलावा, इस ग्रन्थ मे भी मुद्रित है - 'प० रतनचन्द जैन मुख्तार व्यक्तित्व और कृतित्व' (सम्पादन प० जवाहरलाल जैन सिद्धान्तशास्त्री एव डॉ० चेतनप्रकाश पाटनी, आचार्यश्री शिवसागर दि० जैन ग्रन्थमाला, शान्तिवीरनगर, श्रीमहावीरजी, 1989). जिल्द 2, पृ० 1207-56. 'सुदर्शन-निलय', 13-बी, आर्-ब्लॉक दिलशाद गार्डन, दिल्ली 110 095 दूरभाष (011) 2213 7590, 2257 3621

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