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अनेकान्त 61/ 1-2-3-4
चित्रित किये जाते थे । 'अन्तगडदशाओं' सुत्त में कथन है कि सुलसा ने हरि नैगमेषित देव की मूर्ति को प्रतिष्ठित किया था और वह प्रतिदिन उसकी पूजा किया करती थी । प्रायः प्राचीनतम उपलब्ध जैन मूर्तियां कुशाणकाल की हैं, यद्यपि तीर्थकरों की दो दिगम्बर मूर्तियां मौर्यकाल की भी उपलब्ध हुई हैं। परन्तु पूजायोग्य वस्तुओं के व कभी-कभी उन वस्तुओं के भी जो केवल लौकिक महत्त्व की हैं, या जो वैज्ञानिक धारणा को लिए हुए हैं, बहुत से प्रतीक व प्रतीकात्मक रचनाएँ जैन कला में और भी अधिक प्राचीन काल से पायी जाती हैं।
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अग्नि का प्रतीक
जैन कला के प्रतीकों का उल्लेख हम अग्नि के प्रतीक से प्रारम्भ करते हैं 1 अग्नितत्त्व का सम्वन्ध जागरण व बोधि से है । आग्नेय शक्ति के अन्तिम स्रोत सूर्य को वेदों में जीवन और चेतना का सबसे बड़ा प्रेरक बतलाया गया है। यह प्रज्ञा की अर्चिषा है जिसके द्वारा 'मार' को पराजित किया जाता है। अमरावती के वे उघड़े हुए प्रतीक जिनमें बुद्ध भगवान् को अग्नि-स्तम्भ के रूप में दिखलाया गया है, वैदिक मान्यताओं के ही अवशेष हैं। वहां अग्निको अप व पृथ्वी से उत्पन्न हुआ बतलाया गया है, चूँकि यह स्तम्भ कमल पर आधारित है। इसी तरह जैनधर्म में अग्नि को तेज व तेजस्वी आत्मा का चिह्न मानने की प्रथा इतनी ही पुरानी है जितना कि पुराने अंगों में आचारांग सूत्र । जेनदर्शन में विश्व के सभी एकेन्द्रिय जीवों को काय की अपेक्षा पांच भेदों में विभक्त किया गया है। वायुकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, पृथ्वीकायिक और वनस्पतिकायिक । जैनतत्त्वज्ञान के कायवाद के अनुसार एकेन्द्रिय जीवों की उक्त कायिक-विभिन्नता उनके पूर्वोपार्जित कर्मों पर आधारित है । जव कोई जीव तेजस्कायिक या अग्निकायिक होने का कर्मबन्ध करता है, तो वह साधारण अग्नि, दीपशिखा, बड़वानल व विद्युत, तेज आदि कोई सा भी रूप धारण कर सकता है। जैन प्रथा के अनुसार अग्नि, वाक् या वाणीका अधिष्ठातृ देवता भी है। जैन ग्रन्थों में जिन 16 शुभ स्वप्नों का उल्लेख आया है, उनमें एक अग्निशिखा विषयक भी है 1 तैस् सम्बन्धी जैन धारणा इतनी सम्पूर्ण है कि यह धूम - रहित अग्नि- शिखा को ही शुभ स्वप्न का विषय मानती है। अग्नि शिखा जो शुभ स्वप्न का विषय मानी गई है, उस तेजस्वी आत्मा का ही सांकेतिक प्रतिरूप है, जो इस स्वप्न की पूर्ति में स्वर्ग से अवतरित हो जन्म लेने वाली है । यह धारणा जैनियों के षट्लेश्यावाद या जीवन- परिणतिवाद से भी बहुत मेल खाती है। यहां यह बतलाना रुचिकर