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४२ वर्ष २३ कि.१
अनेकान्त
__ अब नरेन्द्रसेन के लिए लिखित एक शिलाशासन मार्गशशी सख्ययोलावगमोंदिवतिसुत्तिरे शककाल मुन्नतिय. देखेगे। धारवाड जिला, गदग-तालुक के ग्राम मुलगुद के नन्दनवत्सरदोल"-यहाँ पर गिरी शब्द का संकेतार्थ सन् १०५३ के शिलाशासन मे-नरेन्द्रसेन के शिष्य नय- सात होने से १०३७ शक वर्ष होने पर भी नन्दन सवत्सर सेन के सन्मुख दिये गए दान शामन मे नरेन्द्रसेन को 'व्या- शक वर्ष १०३४ मे पाने से नयसेन द्वारा गिरी का सकेकरण पडित' कह कर वर्णन किया गया। मूलः कन्नड़:- तार्थ (४) चार ग्रहीत हुया है ऐसा समझ पडता है। चंद्रकातंत्र जनेन्द्र शब्दानुशासनं पाणिनीय ।
शक वर्ष १०३४ अर्थात् सन् १११२ ईस्वी नयसेन के संन्द्र नरेन्द्रसेन मुनीन्द्रगे-ऽऽकाक्षर पेरंगिषु मोग्गे॥ धर्मामृत का समाप्तिकाल टहरता है।
हिन्दी अनुवाद :-चन्द्र, कातंत्र, शब्दानुशासनं- इन नयसेन द्वारा अपने धर्मामृत में वर्णित कुछ पाणिनी, इन्द्र आदि व्याकरण ग्रन्थ नरेन्द्रसेन के लिए एक पद्याशों का अवलोकन कीजिए। अक्षर के बराबर है।
कन्नड़ :इसी शासन मे नरेन्द्रसेन के शिष्य नयसेन के बारे गरु विद्याम्धिनरेन्द्रसेन मनिपं- त्रैलोक्य चक्रेश्वरं । में ऐसा वर्णन है। मूल: कन्नड:
परमधीजिन निष्टदेव नमलं श्रीजनयोगीश्वरं ॥ निनगर्नेबेनो शाकटायन, मुनीशं ताने शब्दानु-।
परमार्थ तनगालदरुत्तम विनेयबंधुवर्ग निजासनवोल पाणिनी, पाणिनीयदोल चन्द्र, चान्द्रदोलतज्जिनें। दर दिवेंदोड़े भापु धन्यने दिट वात्सल्यरत्नाकरं ॥५६।। बन जैनेन्द्रदोला कुमारने गंड कौमारवोलान्नवरें।
हिन्दी:-उपरोक्त पद्य मे नयसेन मुनीन्द्र ने अपने तेने पोन्नतन्नयसेन पंडितरोलन्याधिवितोयोल ।।
गुरु नरेन्द्रसेन का गुणगान किया है। साथ ही धर्मामृत के वचन :-इंतु समस्त शब्द शास्त्र पारगन्नंयसेन पडित- २५वे पद्य में नरेन्द्रसेन के साथ 'विद्य नरेन्द्रसेन' वाक्य देवर । हिन्दी मे अनुवाद :-नयसेन उपरोक्त सभी व्या- द्वारा उन्हें विद्य भी मूचित किवा है। यह उनकी उपाधि करण ग्रथों के ज्ञाता तथा निपुण विद्वान थे।
मालूम होती है। हमी शासन मे चालुक्य चक्रवति त्रैलोक्य मल्ल सोमे- कन्नड:-पडेदोडे तपम श्रुतम । श्वर (सन् १०४३-१०६७) के शासनकाल मे उसके सधि
पड़ेयर तच्छ तमनेये पड़ेदोड़े तपमम् ।। विग्रहाधिकारी बेलदेव के प्रार्थनानुसार सिन्द कचरस ने मुल
पड़ेयरदं तवनेरेड म्। गुन्द के जिनमन्दिर को भूदान देने का प्रस्ताव है। उसमें
नोड़बड़े नरेन्द्रसेन मुनिपते धन्य ॥२०॥ मुख्यतः बेलदेव के गुरू नयसेन और नयसेन के गुरू नरेन्द्र
एनितोलवु तर्कशास्त्रम-। सेन का वर्णन भाया है।
वनितुमनतिशयदिनेशये नयसेन मनी-॥ इस शासनोक्त नयसेन ने कन्नड़ भाषा मे "धर्मा
द्र ने बल्लनेन्दु धारिणी। मृत" नामक एक कथा काव्य लिखा है। इसका व्याकरण
मनादरदिदे पोगले कीतियनातम् ॥२१॥ ग्रन्थ भिन्न नही।
नुत सिद्धन्तोकोप्पुवेत्तु जिनसेनाचर्यारं शास्त्रदु-। सस्कृत भाषा में कन्नड व्याकरण ग्रन्थ "भाषा नतियोल भाविसे पूज्यपाद मुनिमों षटतर्कदोल धारिणी।। भूषण" के रचनाकार नागवर्मन अपने भाषा भूषण के स्तुतनागिर्द समंतभद्र मुनियि मिविकर्दनयत्तपः। ७४वे सूत्र में "दी?नयसेनस्य" कहकर नयसेन के मतानु- श्रुतवाराशी नरेन्द्रसेन मुनिप विद्य चक्रेश्वरं ।।२४।। सार संबोधन प्रत्यय का दीर्घात उदाहरण दिया है। इससे पोड़वीशर भुवन कमल्लनुत पादाभोजरत्यजितर । इस नागवर्म का समय सन् ११४५ ईस्वी है।
दृढ़चित्तर गणचन्द्र पडितरिला लोक कपूज्यर मनं ॥ नयसेन मुनीन्द्र ने धर्मामृत में उसका समाप्तिकाल बिड़े विद्यमहाभिधानमनद फूर्तककरि कोहरें। अक्षर संज्ञा से यो प्रकट किया है।-"गिरी शिखी वायु- दोडे विद्य नरेन्द्रसेन मुनियोस् वाग्मीशरार लोकबोल ॥२५