Book Title: Anekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 241
________________ २२२, बर्व २३, कि० ५-६ अनेकान्त इतिहास मे नही मिलता । किन्तु इससे यह सोचने के लिए प्रादि तो प्रचलित हुए हैं। किन्तु कहीं ऐसा तो नहीं है प्राधार प्राप्त होता है कि उद्योतन के थोड़े समय बाद कि स्वय उस जनपद का नाम किसी प्रवन्ति के राजा के लगभग ८१० ई० में कशमीर के उत्पलवश मे भवन्ति. कारण प्रवन्ति पड़ा हो ? वर्धन नाम का एक लोकप्रिय राजा हुमा है।' सम्भव २. मालवा मे ६९६ ई० मे विनयादित्य राष्ट्रकूट है उसका मालवा से उद्योतन के समय में कोई सम्बन्ध के बाद ७६४ ई० में गोविन्दधारावर्ष ततीय के शासन के रहा है। किन्तु इसकी प्रामाणिकता के लिए अभी अनेक बीच किन-किन राजानों का शासन प्रवन्ति पर रहा? साक्ष्यो की प्रतीक्षा करनी होगी। उनमें से प्रवन्ति नाम के राजा की पहचान किससे की भवन्ति नाम के नरेश के सम्बन्ध में उद्योतन द्वारा जा सकती है ? जिसका उद्योतन सूरि ने संकेत दिया है ? प्रस्तुत कुवलयमाला का तीसरा उल्लेख अधिक महत्त्वपूर्ण ३.७८३ ई० मे प्राचार्य जिनसेन द्वारा हरिवंशहै। अरुणाभ नगर के राजा कामगजेन्द्र के समक्ष एक पुगण में उल्लिखित 'पूर्वी श्रीमदवन्तिभूभति' का इतिचित्रकार अपने चित्र की यथार्थता को प्रामाणिक करते हामज्ञों ने अबतक जो अर्थ लगाया है उस पर उद्योतन हुए कहता है कि-गजन, उज्जयिनी मे अवन्ति नाम का के 'प्रवन्ति राजा' के उल्लेख से क्या प्रकाश पडता है ? एक राजा है, उसकी पुत्री के सौदर्य को देखकर ही मैंने यह तदरूप चित्र बनाया है : ४. तथा गुर्जर प्रतिहार राजा को अवन्ति जनपद का 'उज्जेणीए राया अस्थि प्रवन्ति ति तस्स धूयाए। शासक मानने वाले विद्वानों के मत पर उपर्युक्त उल्लेखों बढ़ण इमं स्वं तहउ चिच विलिहियं एरथ ॥ का क्या प्रभाव पड़ता है तथा पाठवी सदी मे मालवा (२३३.१६) और राजस्थान के क्या सम्बन्ध थे? प्रागे भी अवन्ति की रानी-रण्णो अवन्तिस्स (३१) प्रथम प्रश्न के समाधान से सम्बन्ध में कहा जा तथा 'प्रवन्तिणा दिण्णा तस्स' (३२-३३) जैसे शब्दों के सकता है कि 'अवन्ति जनपद' का उल्लेख पाणिनी के समय प्रयोग से यह स्पष्ट हो जाता है कि उज्जयिनी के राजा भी होता था। उसके बाद यह नाम निरन्तर प्रयुक्त का नाम अवन्ति था । होता रहा । साहित्य में और यत्रतत्र कला अवशेषों में कुवलयमाला के उपयुक्त तीन उल्लेख कई महत्त्व भी किन्तु इस जनपद विशेष का नाम अवन्ति कैसे पड़ापूर्ण प्रश्न उपस्थित करते हैं, जिन पर इतिहासज्ञों को विचार करना प्रावश्यक है । यथा इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। पौरा१. मालवा प्रदेश का पूर्ण नाम 'अवन्ति जनपद णिक विचारधारा है कि प्रत्येक कल्प मे यह शस्थली प्रचलित होने का क्या प्राधार है? अवनि जनपद के देवता, तीर्थ, प्रोषधि, बीज एव प्राणियो का प्रवन अनुसार वहाँ जातियो के नाम यथा--प्रवन्ति ब्रह्मा, (रक्षण) करती है अतः प्राचीन समय से ही अवन्ति नाम स्त्रियो के नाम यथ!-अवन्ति', भाषा का नाम यथा से इसकी प्रसिद्धि है। यह प्राचीन समय क्या है ? कह प्रवन्तिजा' तथा निवासियों का नाम यथा--प्रवन्तिक' पाना कठिन है। किन्तु जहा तक रक्षण का प्रसंग है वह किसी प्रतापी प्रजावत्सल राजा के साथ भी हो सकता है। १. राजतरगणी-कल्हण । जो राजा वहा के निवासियों प्रादि का भनी भाति रक्षण २. दृष्टव्य पाणिनीकालीन भारतवर्ष--डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल, पृ० १०१ करता रहा हो बाद मे उसी के नाम से इस प्रदेश विशेष ३. प्राच्या विदूषकादीना योज्या भाषा प्रवन्ति जा- का नाम प्रवन्ति पड़ गया हो। साहित्य में प्रवन्ति नाम नाट्यशास्त्र। के राजामो की परम्परा प्राप्त होती है। कालिदास ने ४. भाभीरकावन्तिककोशलाश्च मत्स्याश्च सौराष्ट्रविन्ध्यपालाः। ५. पौराणिक प्रवन्तिका और उसका माहात्म्य-वरांगचरित, उपाध्ये, ६ अध्याय, १५ श्लोक ३३ रामप्रताप त्रिपाठी, -विक्रम स्मृति ग्रन्थ, पृ० ४४३

Loading...

Page Navigation
1 ... 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286