Book Title: Anekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 253
________________ आराधनासमुच्चय का रचना-स्थल पं०के० भुजबली शास्त्री, विद्याभूषण श्री क्षु० सिद्धसागर जी महाराज के द्वारा सम्पा- की मूर्तियां विराजमान है। यह मन्दिर प्राचीन और दित और हिन्दी में अनुवादित एवं दिगम्बर जैन समाज कलापूर्ण है । अनुमानत: ११वी शताब्दी का यह मन्दिर मोजमाबाद (जयपुर) के द्वारा प्रकाशित श्री रविचन्द्र वीरराजेन्द्र नन्नि चगाल्वदेव द्वारा पुन: प्रतिष्ठापित मुनीन्द्र विचरित प्राराधनासमुच्चय मेरे पास समालोच- होकर 'राजेन्द्र चोल जिनालय के नाम से प्रसिद्ध है। नार्थ पाया है । प्रस्तुत कृति की प्रस्तावना डॉ० कस्तूर. इस जिनालय के निकट कई शिलालेख हैं । इनसे चन्द्र कासलीवाल, एम० ए०, पी-एच०डी० (जयपुर) के सिद्ध होता है कि एक जमाने मे यह स्थान जैनो का एक द्वारा लिखी गई है प्रसिद्ध केन्द्र रहा । लेखों में कतिपय मुनियों की परम्परा प्रस्तावना मे डॉ. कासलीवाल ने पाराधनासमुच्चय भी दी गई है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में यहाँ के रचयिता रविचन्द्र मुनीन्द्र के सम्बन्ध मे लिखते हुए पर एक विशाल जैन मठ और प्रासपास बहुत से जैन यो लिखा है मन्दिर विद्यमान थे। बल्कि आज भी इस स्थान पर "श्रीरविचन्द्रमुनीन्द्रः पनसोगेग्रामवासिभिग्रंथ.। इसके बहुत से चिन्ह दृष्टिगोचर होते है। रचितोऽयमखिलशास्त्रप्रवीणविद्वन्मनोहारी ॥ दक्षिण कन्नड जिला अन्तर्गत कारकल मे जैनो का इस पद्य से केवल उनके नाम का तथा पनसोगे ग्राम जो प्रसिद्ध 'जन मठ' है, वह इस हनसोगे मठ का हो का जहाँ इस कृति की रचना समाप्ति हुई थी, जानकारी __ शाखा मठ है । यह बात अनेक शिलालेख एव ग्राथिक मिलती है। पनसोगे ग्राम डा० ए० एन० उपाध्ये के प्रमाणो से सिद्ध हो चुकी है। कारकल के मठ के ठीक अनुसार कर्नाटक प्रदेश में स्थित है। इससे यह तो सभ सामने 'चतुर्मुख जिनालय' के सामने जो विशाल, कलापूर्ण वतः स्पष्ट है कि कवि दक्षिण भारत के निवासी थे और मन्दिर है, तत्सम्बन्धी शिलालेख में भी स्थानीय ललित उनका कार्यक्षेत्र भी दक्षिण भारत ही रहा था। क्योकि कीर्ति भट्रारक को हनसोगे अथवा पनसोगे के देशीयअब तक जितने रविचन्द्र नाम के विद्वानों के उल्लेख गणीय स्पष्ट उल्लेख किया है। कविचन्द्रमविरचित मिले है, वे सब दक्षिण भारत से सम्बन्धित हैं।" 'गोम्मटेश्वरचरिते' में, इन्होने भट्टारक ललितकीति को प्रागे कस्तूरचन्द जी फिर लिखते हैं कि उक्त (डा. पनसोगे पूर्वाद्रि के अनुपम सूर्य बतलाया है । ए० एन० उपाध्ये द्वारा) सभी रविचन्द्र कर्नाटक प्रदेश इसी प्रकार 'जिनयज्ञफलोदय' के रचयिता मुनि में हुए और वही प्रदेश उनकी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कल्याणकीति जी ने भी गुरु ललित कीति जी को मूलसघ, गातावधियो का कन्द्र रहा । इसालए यहा अाधक सम्भव कुन्दकुन्दान्वय, देशीयगण, पुस्तक गच्छीय देवकीर्ति जी के है कि पाराधनासमुच्चय के कर्ता भी कनटिक प्रदेश के शिष्य, पनसोगे वंश के रत्न चारित्रवान्, शीलवान् प्रादि रहे हों और दक्षिण भारत ही उनकी गतिविधियों का बतलाया है। विशेष विवरण के लिए मेरे द्वारा सम्पादित केन्द्र रहा हो।" __ और 'जैन सिद्धान्तभवन' पारा की ओर से प्रकाशित अब हनसोगे का परिचय लीजिए । मैसूर जिलान्तर्गत 'प्रशस्ति संग्रह' में कल्याणकीर्ति का 'जिनयज्ञ फलोदय' कृष्णराजनगर तालूके में साले ग्राम से लगभम ५ माल दूरा ग्रंथ का परिचय देखें। पर अवस्थित हनसाग हा अाराधनासमुच्चय का रचना इस प्रकार प्राराधनासमुच्चय का रचनास्थल का स्थल है। यहां पर इस समय एक त्रिकूट जिनालय मोजूद परिचय है। मनि रविचन्द्रजी का विशेष परिचय मालूम है। इस जिनालय मे प्रादिनाथ, पाश्वनाथ और नेमिनाथ होने पर उसे भी अवश्य प्रकाशित करूंगा। -मूरविडी (दक्षिण कनारा)

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