Book Title: Anekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 262
________________ दक्षिण भारत से प्राप्त महावीर प्रतिमाएं है, जिसकी दाहिनी भुजा में एक बालक और बायी में में संगृहीत है। इस निधि से उपलब्ध मूर्तियों को अन्य माघ्र फल प्रदर्शित है। डॉ. यू. पी. शाह ने निर्मिती, मण्डन, स्थलों से प्राप्त होने वाली कांस्य प्रतिमामों की साम्यता अलंकरण तत्त्वों के प्राधार पर इस कांस्य प्रतिमा को के आधार पर ११वी-१२वी शती में तिथ्यांकित किया हवीं शती के अन्तिम चरण मे तिथ्याकित किया है। गया है। इस निधि से प्राप्त होने वाली एक प्रतिमा की समूचे अंकन की देवालय के रूप में कल्पना के प्राधार पर पहचान महावीर अंकन से की गई है। किन्तु यह पहचान उनका अनुमान है कि इस प्रतिमा का प्राप्ति-स्थल कही लाञ्छन के प्रभाव में निश्चित नही है। वक्षस्थल पर कर्नाटक मे होना चाहिए। श्रीवत्स चिह्न का प्रभाव और दक्षिण भारत की सामान्य २. पालघाट जिले के कावश्शेरी अम्शोम नामक विशेषता के विपरीत उष्णीष का प्रदर्शन इस चित्रण की स्थान के पालटूर नामक स्थल (केरल) से प्राप्त जन अपनी विशेषता है । मन्दिरों के ध्वंसावशेषो के साथ ही प्राप्त दो प्रतिमानों ४. अकोला जिले के कारंजा नामक स्थल से प्राप्त में एक तीर्थकर महावीर का चित्रण करती है। महावीर होने वाली महावीर की एक अन्य कांस्य प्रतिमा प्रतिमा साधारण किन्तु भली भांति निर्मित है और महा- (२३ इंच ऊँची) मे पधामनस्थ महावीर को सत्वपर्यडू वीर को पूर्ण भद्रासन पर पर्यङ्कासन मुद्रा में पासीन प्रासन मे सिंहासन पर पासीन चित्रित किया गया है।' प्रदर्शित करती है। देवता की सम्पूर्ण निर्मिती भव्य महावीर प्राकृति त्रिछत्र और एक मुख वाले सर्पफण के पौर सानुपातिक है। मुखाकृति से ही महावीर की नीचे अवस्थित है। त्रिछत्र के चारों पोर शाल पत्तियां अन्तर्दृष्टि और प्रात्मानुभूति का भाव सुस्पष्ट है। महावीर लिपटी है। पीठिका पर उत्कीर्ण सिंह प्राकृति के नीचे की मखाकृति का मण्डन वृत्ताकार है, और लम्बे कर्णव धर्मचक निर्मित है । साथ ही सिंहासन के निचले भाग पर सीधे व वर्गाकार स्कन्धों वाले देवता की भजामों व अण्ट ग्रहों को मूर्तिगत किया गया है। सिंहासन का पृष्ठ. शरीर की निमिती भी प्रशंसनीय है। श्रीवत्स चिह्न भाग अलकरणात्मक है, जिस पर गरजते हुई सिंह पाकअनुपलब्ध है, किन्तु देवता के मस्तक पर प्रदर्शित निछत्र, तियो के ऊपर मकर-मुख निर्मित है । साथ ही देवता के नग्नता, लम्बी भुजाएं, युवा शरीर और महावीर के लाछन, दोनो पावों में यक्ष-यक्षिणी और चांवरधारी प्राकृतियों सिंह का चित्रण स्पष्ट है। प्रतिमा मे गन्धर्व प्राकृतियो का मनोहारी चित्रण हमा है। तीर्थङ्कर प्राकृति के नीचे को मुख्य प्राकृति के दोनो पोर उत्कीर्ण किया गया है। दो अलग पीठिकापो पर दोनो पाश्वों मे उनके यक्षगन्धवों के दाहिने हाथो में चौरी स्थित है, जब कि उनके यक्षिणी, मातंग और सिद्धायिका का काफी विशद प्रकन बाएं हाथ नितम्बो पर स्थित है। इस चित्रण मे सिंहासन हुआ है। द्विभुज मातग को धन का थैला व जबीरी नीबू के सूचक दो सिंह प्राकृतियो का सुन्दर अंकन हुआ है। (Citron) धारण किये हुए उत्कीर्ण किया गया है । मूर्ति की कलागत विशेषताएं इसके ९वीं.१०वीं शती चतुर्भुज सिद्धायिनी के हाथो में कुल्हाडी, कमल पुष्प, जबीरी में तिथ्याकित किए जाने की पुष्टि करती है। नीबू और पुष्प ( ) स्थित है। यक्ष प्राकृतियो के ऊपर महावीर प्रतिमा के दोनों पाश्वों में उत्कीर्ण दो रथिकायो ३. प्रान्ध्रप्रदेश के गुन्टूर जिले में स्थित बपतला नामक जैसे देवालयों में कायोत्सर्ग मुद्रा मे खडे पार्श्वनाथ (वाहिनी स्थल से कुछ वर्ष पूर्व जैन कास्य प्रतिमानो का एक संग्रह प्राप्त हुआ था, जो सप्रति हैदराबाद पुगतात्त्विक सग्रहालय ३. Ramesan, N., Jaina Bronzes from Bapa tala, Lalit Kala, No. 13, p. 29. 2. Unnithan, N.G. Relics of Jainism Alatur, ४. Barrett, Douglas, A Jain Bronze from Tour. Indian History, Vol XLIV, Pt. I, the Deccan, Oriental Art, Vol. V, No 1 Serial No 130, April 1966, p 540. (N. S.) 1959. pp. 162-65.

Loading...

Page Navigation
1 ... 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286