Book Title: Anekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 242
________________ कुवलयमालाकहा में उल्लिखित राजा प्रवन्ति प्रवन्तिनाथ,' प्रद्योतन ने प्रवन्ति एव अवन्तिवर्धन,' श्री प्रकाश परिमल का सुझाव है कि सम्भवतः उद्योतन जिनसेन के प्रवन्तिभूभृत का उल्लेख किया ही है। इति- ने दन्तिदुर्ग को ही प्रवन्ति समझ लिया है । अथवा लिपिहास मे कशमीर के हवीं सदी के एक राजा का नाम कार ने यह गड़बड़ी पैदा की है। किन्तु कुवलयमाला के अवन्तिवर्मन था। प्रतः किमी राजा का नाम प्रवन्ति होना स्पष्ट उल्लेखों के सन्दर्भ में यह सुझाब म्वीकार्य नही पाश्चर्य की बात नही है। १२वी सदी में अनहिल के लगता । सम्भवतया मालवा से प्राप्त अवशेषो के अध्य. प्रसिद्ध राजा जयसिंह सिद्धराज ने अवन्ति पर विजय यन से इस पर कुछ प्रकाश पड़ सके । प्राप्त कर 'अवन्तिनाथ' उपाधि भी धारण की थी। मालवा का (उज्जयिनी) राजा प्रवन्ति था, उद्योतन दूसरे राजा के नाम पर नगर का नाम रखे जाने की के इस कथन की पुष्टि उनके ठीक ५ वर्ष बाद के प्राचार्य परम्परा भी भारत मे खोजी जा सकती है। बीकानेर जिनसेन द्वारा की जाती है । ७८३ ई० मे जिनसेन ने नगर का नाम महाराजा बीकाजी से जुड़ा हुआ है और हरिवंश पुराण की रचना की। उसमे उन्होने लिखा हैनगर से पूरे स्टेट को भी बीकानेर स्टेट कहा जाता सात सौ पाच शक सवत मे, जबकि उत्तर दिशा का इन्द्रा. रहा है। प्रत. इम सम्भावना पर विचार किया जा सकता युध, दक्षिण का कृष्णराज का पुत्र श्राबल्लभ, पूर्व दिशा है कि किसी अवन्ति नाम के राजा ने उज्जयिनी के सीमा- का श्रीमान् प्रन्तिगज और पश्चिम दिशा का वत्सवर्ती प्रदेश में विशेष प्रमिद्धि प्राप्त की हो और बाद मे राज तथा मौर्यों के अधिमण्डल सौराष्ट्र का वीर जयवराह उसकी स्मृति में वह प्रदेश विशेष प्रवन्ति के नाम से जाना पालन करता था...तब इस ग्रन्थ की रचना की गयी जाने लगा हो। पौराणिक मान्यता और साहित्य से इस थी। जिनसेन के इस श्लोक के तीसरे पद 'पूर्वा सम्भावना को बल मिलता है, ऐतिहासिक तथ्य मिलने श्रीमदन्तिभूति नृपेवत्सादिराजेऽपरा' का विद्वानो ने यह पर यह बात प्रमाणित भी हो सकती है । अनुमान लगाया कि वत्सराज अवन्ति का राजा था। उद्योतन द्वारा उल्लिखित उज्जयनी के राजा प्रवन्ति किन्तु डॉ. दशरथ शर्मा ने अनेक साक्ष्यो के माधार पर इस का कोई समय नही दिया गया है। किन्तु यदि प्रवन्ति अर्थ का खण्डन किया तथा यह स्थापना है कि वत्सराजा को उनका समकालीन ही माना जाय तो यह देखना राज पश्चिम प्रदेश का राजा था और पूर्वप्रदेश के राजा होगा कि इतिहास में किससे पहचान को जा सकता है। का नाम जिनसेन ने लिया नही, केवल प्रवन्तिराज कह प्रवन्ति जनपद (मालवा) पर ६६६ ई. में विनयादित्य दिया है। का शासन था, उसके बाद दन्तिदुर्ग राष्ट्रकूट राजा का किन्तु उद्योजन के उपयुक्त उल्लेखों से यह स्पष्ट हो वहाँ ७५३ ई० मे शासन रहा । ७९४ई. मे गोविन्द्र- गया कि उस समय मालवा का गजा कोई अवन्ति नाम धारावर्ष ने नागभट्ट।। से पवन्ति का शासन छीन लिया। का राजा था। अत: जिनसेन ने भी पूर्व दिशा के राजा का प्रतः ७५३ से ७६४ ई. के बीच के समय मे नागभट नाम छिपाया नही अपितु 'अवन्तिभूभूति' उसका असली का प्रवन्ति में कब शासन रहा यह विचारणीय है। नाम हा दिया है । जिसका मालवा पर ७७६ इ० स ७५३ तथा इसी समय क्या कोई अवन्ति नाम का शासन भी ई० तक तो शासन था ही, जिसका इन दोनों प्राचार्योवहा रहा? यह एक खोज का विषय है। मेरे एक मित्र उद्योतन-जिनसेन ने उल्लेख किया है। प्रतः सम्भवतः दन्तिदुर्ग के बाद मालवा का शासन अवन्तिभूभूति के हाथों १.प्रवन्तिनाथोऽयमुदप्रवाहुविशालवक्षास्तनुवृत्तमध्यः। - -रघुवंश, ६-३२ ६. शाकेष्वन्दशतेषु सप्तसु दिश पंचोत्तरेषतरां २. कुवलयमाला, २३३-१६; १५०,३१ । पानीन्द्रायुषनाम्नि कृष्णनुपजे श्रीवल्लभे दक्षिणाम् । ३. हरिवंशपुराण, सर्ग ६६, श्लोक ५२। पूर्वा श्रीमदवन्तिभूभूति नृपे वस्मादिराजेऽपरां, ४. विक्रम स्मृति ग्रन्थ, पृ. ४२७ । -दृष्टव्य सूर्याणामधिमण्डल जयजुते वीरे वराहेऽवति ।। ६६.५२ ५. वही, भास्कर भार.सी. मालेराव का लेख-दृष्टव्य । ७. राजस्थान यू. व एजेज, पृ० १२६ इत्यादि।

Loading...

Page Navigation
1 ... 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286