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कराती है। दो भाई जिनपालिय और जिनरविषय" जिनकी भेंट एक द्वीप मे एक देवी और एक देव से हुई थी, इस तथ्य के उत्कृष्ट उदाहरण है [ भ० १४७ ] । डण्ड बंडा वैरागी और तपस्वी था। जब वह तप करते हुए खड़ा था, कहीं से श्राकर एक तीर ने उसे वीघ दिया । जिनके शब्दों के ध्यान मे ध्यानस्थ होने के कारण उसने अपने शरीर की उपेक्षा की और दर्द सहता रहा । अन्त में उसे परम पद प्राप्त हुआ। [म० ४६५, संथा० ६१६२] जो मियाली है और सन्तो के प्रति घृणा रखता है. उसे तुरुमिणी के दस की भाँति बहुत दुख सहने पड़ते है [०६२ ० ४६११] जिनकी भक्ति से सुख और उच्च कुल में जन्म उसी प्रकार प्राप्त होता है जैसे कि राजगृह के दादुर" को प्राप्त हुए थे जो कि पूर्व भव में मणियार सेट्टी था [ भ० ७५] संत दमदन्त यद्यपि कौरवों द्वारा निदित धोर पाण्डवों द्वारा प्रशसित था, दोनों के प्रति समभावी ही रहा [म० ४४२] देवरई साकेत के राजा ने राज्य धौर राज्यसुख सब ही सो दिया और अपनी ही रानी द्वारा नदी मे फेक दिया गया क्योंकि वह स्वयम् एक लगड़े व्यक्ति पर आसक्त थी [म० १२२] । दो भिक्षु, धन्न श्रौर सालिभद्द, जो घोर तपस्या से महमान्वित थे । नालंदा के निकटस्थ वैभारगिरि के निकट दो पाषाण शिलाओ पर प्रायोपगमन किया; उन्हे अपने शरीर पर जरा भी मोह नही रह गया था और इसलिए वे शीत एवम् उष्ण सहते-सहते मुरझाने लगे और नष्ट हो गए और उन्हें धनुत्तर विमान प्राप्त हुषा देवानुग्रह से उनकी अस्थियों के ढेर बाज भी वहा देखे जा सकते है [म० ४४२-४६ ] । चन्द्रगुप्त के पाटलिपुत्र में एक धम्मसिंह था जो चन्दमिर को छोड़कर कल्लऊर में भिक्षु जीवन बिताने लगा था। उसने गृद्धपृष्ठ" प्रत्याख्यान बड़ी शांति के साथ पालन किया। हजारों कीड़ों से खाये जाने पर भी उसने शरीर की कोई परवाह नहीं की, मौर इसलिए अन्त मे परम पद प्राप्त किया। [ संथा
अनेकान्त
१७ तुलना करो नायाधम्मक हाम्रो, अध्या: ६ १०१८, मायदी कुमारों का कथानक ।
१० नायाको प्या. १३
१६ सत्तरह प्रकार के मरण का यह एक प्रकार है ।
७०-७२] । नंद, परशुराम पाण्डुराय और लोमान क्रोध, मन, माया और लोभ के कारण हो क्रमशः नष्ट
हुए [ भ० १५३ ] । अयलग्गाम नगर के एक परिवार के पांच व्यक्ति, सुरई, सय, देव, समण और सुभद्द ने बड़ी श्रद्धा के साथ खमग नामक भिक्षु की जो कठोर तप से हीन क्षीण हो गया था। सेवा सुश्रुषा को और पुण्य एवम् पाप के विषय मे उस भिक्षु से देशना सुन कर पाँचों ही ने श्रावक के १२ व्रत स्वीकार कर लिए। उनने बाद में वासुपूज्य स्वामी के तीर्थंकाल मे, प्रव्रज्या भी ले ली और धनेक प्रकार की तपस्याये की फल स्वरूप मरने पर वे पाँचों अपराजित विमान में गए वहाँ से चय कर वे भरत देश के राजा पाण्डुके घर में पांच पुत्रके रूप मे उत्पन्न हुए । कृष्ण की मृत्यु के दुखद समाचार सुन कर इन्हें भी वैराग्य हो गया और ये सुट्टिय श्राचार्य के मुनिधर्मी शिष्य हो गए सबसे बड़े ने १४ और शेष तीन ने ११ पूर्व का ज्ञान प्राप्त किया। वे समस्त ससार मे प्रसिद्ध हुए वे सौराष्ट्र में पाए और वहां भगवान नेमि जिन के निर्वाण को सुन कर उनने भी अनशन कर लिया। भीम ने कठोर तपस्या की और शत्रुंजय पहाड पर उसने प्रायोपगमन स्वीकार कर लिया, और सब प्रकार के परिषह सहते हुए अन्त मे परिनिर्वाण प्राप्त हुआ। फिर शेष भाइयों ने भी उसका अनुगमन किया [म० ण४१-६४ ] |
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पाण [ याने चाडाल ] तक ने भी देवों की मदद प्राप्त कर ली क्योकि मगरमछ ताल मे गिरने पर उसने केवल एक दिन का श्रहिंसा व्रत पालन किया था [ भ० ६६ ] । अपने पाप्त जनों और सगे-सम्बन्धियों के प्रति भासक्ति या राग एक क्षण के लिए भी नही होना चाहिए; क्योंकि ये हो तो जीव के दुश्मन हो जाते है जैसे कि ब्रह्मद की माता उसके लिए हुई थी। [म० ३७६] मंखलि द्वारा" उसके तप-तेज बल से महावीर के शिष्य भस्म कर दिए गए थे और इस प्रकार भस्म होकर उनने परम पद की प्राप्ति की। [संथा० ८८ ] । राणी मियाबाई ने सिर्फ वन्दना और अन्य धर्मानुष्ठान कर अपने पूर्व जन्मों के कर्म एक क्षण में नष्ट कर दिए थे। [५०५०] परिग्रह या राग भयावह है। सन्त मेयज्ज कोच पक्षी सहित २० तुलना करो, भगवती, शतक १५ ।